Bihar Fake Police : नौकरी के नाम पर बना डाले 300 से ज्यादा फर्जी पुलिसकर्मी

बिहार हमेशा से अपने अनोखे और चौंकाने वाले मामलों के लिए चर्चा में रहा है। लेकिन इस बार जो मामला सामने आया है, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। पूर्णिया जिले में एक शातिर ठग ने युवाओं को सरकारी नौकरी का सपना दिखाकर न सिर्फ उनसे लाखों की ठगी की बल्कि उन्हें फर्जी पुलिस बनाकर क्षेत्र में तैनात भी कर दिया।
ये मामला उन लोगों के लिए आंख खोलने वाला है जो सरकारी नौकरी के लिए शॉर्टकट अपनाने की सोचते हैं। इसमें एक मास्टरमाइंड ने फिल्म ‘स्पेशल 26’ की तर्ज पर स्कीम चलाई, जहां बेरोजगार युवाओं को ग्राम रक्षा दल (Village Defense Corps) और दलपति के पद पर नौकरी का झांसा देकर ठग लिया गया।
कैसे सामने आया फर्जी पुलिस गैंग का पर्दाफाश?

इस गोरखधंधे का खुलासा तब हुआ जब ठगी के शिकार कई युवक-युवतियां मास्टरमाइंड राहुल कुमार साह के घर पहुंच गए और अपनी दी गई रकम वापस मांगने लगे। इस अफरा-तफरी के बीच राहुल वहां से फरार हो गया।
पीड़ितों ने बताया कि पिछले एक साल से ज्यादा समय से राहुल कसबा थाना क्षेत्र के नेमा टोल में फर्जी भर्ती अभियान चला रहा था। वह लोगों को बता रहा था कि वे बिहार ग्राम रक्षा दल और दलपति में सिपाही या चौकीदार की सरकारी नौकरी पा सकते हैं—बस 10,000 रुपये देने होंगे।
ऐसे बनाई जाती थी फर्जी पुलिस फोर्स

राहुल कुमार ने लोगों से पैसे लेने के बाद उन्हें न केवल फर्जी पहचान पत्र दिए, बल्कि खाकी वर्दी और लाठियां भी उपलब्ध कराईं। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि इन युवक-युवतियों को बाकायदा वाहनों की चेकिंग और शराब के खिलाफ कार्रवाई में लगाया गया।
इन युवाओं को यह बताया गया:

- वे अब ग्राम रक्षा दल में भर्ती हो चुके हैं
- उन्हें हर महीने ₹22,000 की सैलरी मिलेगी
- कुछ हफ्तों की ट्रेनिंग के बाद उनका स्थायी चयन होगा
- उन्हें एक स्कूल भवन में अस्थायी पुलिस चौकी का काम दिया गया
असली पुलिस को भी नहीं था शक
गांव और आसपास के क्षेत्र में फर्जी चौकी इस तरह स्थापित की गई थी कि आम जनता को ही नहीं, कभी-कभी असली पुलिस को भी इनकी असलियत पर शक नहीं हुआ। वहीं, युवाओं को भी यकीन हो गया था कि वे सरकारी कर्मचारी बन चुके हैं।
क्या काम कराए जाते थे इनसे:
- गश्ती ड्यूटी
- ग्रामीण क्षेत्रों में वाहनों की चेकिंग
- शराब माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई
- नकली चालान काटना
- वसूली करना
ठगी का पूरा तंत्र: एक संगठित नेटवर्क
पैसा जमा कराने की प्रक्रिया:
- पहला भुगतान: ₹10,000 – नामांकन और पहचान पत्र के नाम पर
- दूसरा भुगतान: ₹5,000 – वर्दी, पहचान पत्र, और ट्रेनिंग के नाम पर
- बाद में और भी पैसे मांगे जाते थे प्रमोशन या स्थायी नियुक्ति के नाम पर
मास्टरमाइंड को कितना फायदा हुआ?
जानकारी के मुताबिक, राहुल कुमार साह ने अब तक 300 से ज्यादा युवक-युवतियों से 10,000 से लेकर 15,000 रुपये तक की वसूली की है। इसके अलावा, कथित गश्त के दौरान हुई वसूली में भी मोटी रकम कमाई गई।
फर्जी पुलिस द्वारा की गई वसूली और चालान
गांवों में चल रहे इस फर्जी नेटवर्क में वाहन चालकों से चालान के नाम पर वसूली की जाती थी। यदि 1,000 रुपये का चालान काटा जाता, तो 200 रुपये फर्जी पुलिसकर्मी को दिए जाते और शेष 800 रुपये मास्टरमाइंड के पास जाते।
शराब के मामलों में क्या होता था?
- ग्रामीण क्षेत्रों में फर्जी पुलिस शराब पकड़ते थे
- फिर मोटी रकम लेकर माफियाओं को छोड़ देते थे
- ये सारा पैसा सीधे राहुल के पास पहुंचता था
कैसे ठगी का शिकार बने युवक?
इन सभी युवक-युवतियों की आर्थिक स्थिति कमजोर थी और वे जल्द से जल्द नौकरी पाना चाहते थे। राहुल जैसे लोगों की वजह से न केवल उनके पैसे डूबे, बल्कि वे कानूनी पचड़े में भी फंस सकते हैं। वे खुद नहीं जानते थे कि जिन जिम्मेदारियों को वे निभा रहे हैं, वे गैरकानूनी हैं।
क्या कार्रवाई की गई?
जब ये मामला उजागर हुआ, तो कसबा थाना पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने फर्जी चौकी को सील कर दिया है और पूरे नेटवर्क की जांच शुरू कर दी है। वहीं, आरोपी राहुल कुमार साह की तलाश की जा रही है जो फरार हो चुका है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार:
- मामले में जल्द गिरफ्तारियां हो सकती हैं
- जिन युवाओं को वर्दी दी गई थी, उनसे भी पूछताछ की जा रही है
- राहुल का मोबाइल फोन स्विच ऑफ है और लोकेशन ट्रेस की जा रही है
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
यह पूरी योजना एक साल से अधिक समय तक चलती रही, लेकिन किसी भी स्थानीय अधिकारी ने संदेह तक नहीं जताया। ना ही किसी तरह की वैरिफिकेशन की गई और ना ही स्कूल में चल रही फर्जी चौकी पर ध्यान दिया गया।
इससे प्रशासनिक लापरवाही भी सामने आती है, जो भविष्य में ऐसे अपराधों को बढ़ावा दे सकती है।