Muharram Violence बिहार में ‘आग’ कौन लगा रहा, मुहर्रम हिंसा के पीछे सियासी खेल या सामाजिक बदलाव?
बिहार के कुछ हिस्सों में मुहर्रम के जुलूस के दौरान हुई हिंसा ने राज्य की कानून-व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई जानकार इसे सियासी साज़िश से जोड़ रहे हैं, तो कुछ विशेषज्ञ इसे सामाजिक बदलाव की प्रतिक्रिया मानते हैं। प्रशासन ने जांच शुरू कर दी है और वीडियो फुटेज खंगाले जा रहे हैं ताकि असली गुनहगारों की पहचान की जा सके।

बिहार में मुहर्रम 2025 के दौरान मोतिहारी, कटिहार, दरभंगा, मुजफ्फरपुर समेत 10 जिलों में सांप्रदायिक झड़पों ने राज्य को हिलाकर रख दिया. पथराव, तोड़फोड़ और हत्या की घटनाओं ने शांति भंग की. क्या यह पक्ष और विपक्ष, दोनों ओर से 2025 के विधानसभा चुनाव की रणनीति है या बढ़ती मुस्लिम आबादी और बदलते जनसांख्यिकीय समीकरणों का परिणाम? बिहार की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं.
मुहर्रम जुलूस के दौरान बिहार के कई जिलों में हिंसा भड़की. कटिहार में बजरंगबली मंदिर पर पथराव और हिंदू मोहल्लों में तोड़फोड़ की खबरें आईं. दरभंगा में एक पुलिस ASI को चाकू मारा गया, जबकि समस्तीपुर में पूजा सामग्री की दुकान को निशाना बनाया गया. भागलपुर में जुलूस के दौरान गोलीबारी की अफवाहों ने तनाव बढ़ाया. इन घटनाओं ने सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है. हाल में ही नेता प्रतिपक्, तेजस्वी यादव के वक्फ कानून पर आक्रामक बयान-हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं, वक्फ कानून को कूड़ेदान में डाल देंगे और इसके बाद पटना में सनातन महाकुंभ का आयोजन, सवाल उठता है कि क्या ये सब 2025 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दांव हैं या बिहार में तेजी से बदल रहे जनसांख्यिकीय समीकरणों का परिणाम? आइये पहले नजर डालते हैं किन शहरों में क्या घटनाएं हुईं.
कटिहार

मुहर्रम जुलूस के दौरान बजरंगबली मंदिर पर पथराव हुआ जिससे तनाव फैल गया. हिंदू मोहल्लों में घरों पर पथराव में दो बाइक क्षतिग्रस्त और एक ATM को भी निशाना बनाया गया. उपद्रवियों ने पूजा सामग्री की दुकानों में तोड़फोड़ की. पुलिस ने स्थिति नियंत्रित करने के लिए हल्का बल प्रयोग किया.
दरभंगा
जुलूस के दौरान एक पुलिस ASI को भीड़ ने चाकू मारकर घायल कर दिया. बिजली के करंट से एक व्यक्ति की मौत की खबर भी सामने आई. हिंसा ने स्थानीय समुदायों के बीच तनाव बढ़ा दिया है.
मुजफ्फरपुर
बरियारपुर पुलिस थाना क्षेत्र के गौरीहार इलाके में मुहर्रम जुलूस के दौरान दो समुदायों के बीच झड़प में दो लोग घायल हो गए. SSP सुशील कुमार ने बताया कि जुलूस के रूट पर विवाद के कारण तनाव बढ़ा. पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किया.
मोतिहारी
मेहसी के कोठिया हरेराम पंचायत के कंकट्टी बाजार में ताजिया जुलूस के बाद पुरानी रंजिश के चलते एक पक्ष ने दूसरे समुदाय पर हमला किया. 32 वर्ष के अजय यादव की हत्या कर दी गई और दो अन्य लोग घायल हो गए जिन्हें SKMCH मुजफ्फरपुर रेफर किया गया. पुलिस ने 12 संदिग्धों को हिरासत में लिया. तलवार के उपयोग की अफवाह थी जिसे पुलिस ने खारिज किया.

समस्तीपुर
मुहर्रम जुलूस के दौरान पूजा सामग्री की दुकान में तोड़फोड़ की गई जिससे स्थानीय लोगों में आक्रोश फैला. पुलिस ने तुरंत कार्रवाई कर स्थिति को काबू में किया.
भागलपुर
जुलूस के दौरान गोलीबारी की अफवाहों ने तनाव बढ़ाया. लाठी-डंडों का उपयोग हुआ और दो समुदायों के बीच झड़प की खबरें आईं. पुलिस ने ड्रोन और वीडियोग्राफी के जरिए निगरानी की.
गोपालगंज
ताजिया जुलूस के दौरान दो पक्ष आपस में भिड़ गए जिसके बाद पुलिस ने हस्तक्षेप कर स्थिति को शांत किया. स्थानीय लोगों ने शांति की अपील की.
अररिया
फारबिसगंज में जुलूस के दौरान तनाव की स्थिति बनी, लेकिन पुलिस की त्वरित कार्रवाई से हिंसा को नियंत्रित किया गया.
किशनगंज
मुस्लिम-प्रधान इस जिले में जुलूस के दौरान छोटे-मोटे विवाद की खबरें थीं, लेकिन बड़े स्तर पर हिंसा की पुष्टि नहीं हुई.
पूर्णिया
जुलूस के दौरान कुछ स्थानों पर तनाव की स्थिति बनी, लेकिन पुलिस ने इसे जल्द काबू में कर लिया.
इन घटनाओं ने बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाए हैं. पुलिस ने मोतिहारी में 12 डीएसपी, 700 इंस्पेक्टर, और 2500 जवानों की तैनाती की थी, फिर भी हिंसा को पूरी तरह रोकना संभव नहीं हुआ. कई जगहों पर शांति समिति की बैठकें आयोजित की गई थीं, लेकिन जुलूसों में अनुशासनहीनता और पुरानी रंजिशों ने हिंसा को भड़का दिया. सोशल मीडिया में वायरल वीडियो और पोस्ट ने तनाव को और बढ़ा दिया. बिहार में बढ़ती मुस्लिम आबादी और चुनावी माहौल को देखते हुए कुछ लोग इसे धार्मिक ध्रुवीकरण से जोड़ रहे हैं.
मुहर्रम 2025 के दौरान बिहार के मोतिहारी, कटिहार, दरभंगा, मुजफ्फरपुर समेत 10 जिलों में सांप्रदायिक झड़पों ने राज्य की शांति को भंग किया. पथराव, तोड़फोड़ और हत्या जैसी घटनाओं ने सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया है. हाल में ही तेजस्वी यादव के वक्फ कानून पर आक्रामक बयान-हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं, वक्फ कानून को कूड़ेदान में डाल देंगे, और पटना में सनातन महाकुंभ के आयोजन पर ऐसे माहौल को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. क्या यह 2025 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए सियासी ध्रुवीकरण है या बिहार में तेजी से बदल रहे जनसांख्यिकीय समीकरणों का साइड इफेक्ट? बढ़ती मुस्लिम आबादी और हिंदू-मुस्लिम तनाव के बीच बिहार की सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता पर महीन नजर से देखने की जरूरत है.
तेजस्वी का बयान और सियासी दांव
बता दें कि RJD नेता तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून पर केंद्र सरकार को निशाना बनाते हुए भड़काऊ बयान दिया था. उनका कहना था कि हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं और वक्फ कानून को कूड़ेदान में डाल देंगे. राजनीति के जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव का यह बयान मुस्लिम वोट बैंक को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. खासकर किशनगंज (68% मुस्लिम), कटिहार (43%), पूर्णिया (38%) अररिया (41%) और दरभंगा (23%) जैसे जिलों में. दूसरी ओर, पटना में सनातन महाकुंभ का आयोजन BJP की हिंदू एकजुटता की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. दोनों दलों की यह रणनीति 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही है.
जनसांख्यिकीय बदलाव और तनाव
2023 की जनगणना के अनुसार, बिहार में मुस्लिम आबादी 17.80% तक पहुंची है, जबकि हिंदू आबादी में कमी आई है. किशनगंज, कटिहार और अररिया में मुस्लिम प्रभाव बढ़ा है. कुछ लोग इसे सांप्रदायिक तनाव का कारण मानते हैं और दावा करते हुए कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय में हिंदुओं के प्रति नफरत बढ़ रही है. हालांकि, सामाजिक विश्लेषक इसे अतिशयोक्ति मानते हैं, क्योंकि बिहार में सह-अस्तित्व की परंपरा रही है. फिर भी भड़काऊ बयानों और धार्मिक आयोजनों ने तनाव को हवा दी है.
चुनावी रणनीति या सामाजिक टकराव?
मोहर्रम हिंसा और धार्मिक आयोजन 2025 के चुनावी माहौल से जुड़े हैं. RJD का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण और BJP का हिंदुत्व कार्ड पुरानी रणनीतियां हैं. लेकिन बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दे भी तनाव को बढ़ा रहे हैं. प्रशांत किशोर जैसे नेताओं ने समावेशी विकास पर जोर दिया है. बिहार को शांति की राह पर लाने के लिए नेताओं को भड़काऊ बयानों से बचना होगा.
सियासतदां माने तब तो!
मोहर्रम हिंसा ने बिहार की सामाजिक संरचना पर सवाल उठाए हैं. सियासी बयान और धार्मिक आयोजन तनाव को बढ़ा रहे हैं, लेकिन मूल मुद्दे-आर्थिक और सामाजिक असमानता पर ध्यान देना जरूरी है. बिहार को सौहार्द और विकास की जरूरत है न कि सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण की. बिहार को शांति और विकास की राह पर लाने के लिए नेताओं को भड़काऊ बयानों से बचना होगा और समावेशी नीतियों पर ध्यान देना होगा. लेकिन, सियासतदां माने तब तो!
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