सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में शिक्षा-प्रौद्योगिकी कंपनी Byju’s के खिलाफ चल रही दिवालिया कार्यवाही और BCCI के साथ बकाया निपटान को लेकर कड़े सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने खासतौर पर यह जानना चाहा कि 15,000 करोड़ रुपये के बड़े कर्ज में होने के बावजूद, बायजू ने सिर्फ BCCI के साथ ही अपने बकाए को चुकाने का फैसला क्यों किया।
कोर्ट का सवाल: सिर्फ BCCI को ही भुगतान क्यों?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच, जिसमें जस्टिस जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, ने इस मसले पर गंभीर सवाल खड़े किए। कोर्ट ने पूछा कि इतनी बड़ी वित्तीय देनदारी के बावजूद, क्या यह उचित है कि एक प्रवर्तक सिर्फ एक लेनदार, यानि BCCI को ही भुगतान करने का विकल्प चुन ले? सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के फैसले पर भी सवाल उठाए, जिसमें बायजू के खिलाफ दीवाला कार्यवाही को रोक दिया गया था। अदालत का मानना था कि NCLAT ने इस मसले पर पर्याप्त विचार नहीं किया और बस BCCI के साथ हुए निपटान को मान्यता दे दी।
BCCI के साथ निपटान और NCLAT का फैसला

यह मामला तब शुरू हुआ जब Byju’s ने भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) के साथ 158.9 करोड़ रुपये का बकाया निपटाने का फैसला किया। इसके बाद, NCLAT ने 2 अगस्त को बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को बंद कर दिया था। इस फैसले से Byju’s को एक बड़ी राहत मिली, क्योंकि इससे संस्थापक बायजू रवींद्रन की कंपनी पर पकड़ मजबूत हो गई। हालांकि, यह राहत थोड़ी ही देर तक रही, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को NCLAT के फैसले को अनुचित करार दिया और Byju’s के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही को रोकने का आदेश दिया। अदालत ने BCCI से यह भी कहा कि निपटान के हिस्से के रूप में मिली रकम को एक अलग बैंक खाते में रखा जाए।
वकीलों की दलीलें
Byju’s की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और एनके कौल ने तर्क दिया कि BCCI को दी गई राशि कंपनी के संस्थापक बायजू रवींद्रन के भाई रिजू रवींद्रन ने अपनी निजी संपत्ति से चुकाई थी। उनका मानना था कि इस निपटान में कोई गड़बड़ी नहीं थी और NCLAT ने सही फैसला किया था।
वहीं, ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी, जो Byju’s को कर्ज देने वालों में से एक है, की ओर से सीनियर वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि NCLAT को दिवालिया कार्यवाही रोकने से पहले विचार करना चाहिए था कि BCCI द्वारा लिए गए सेटलमेंट के पैसे संदिग्ध हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि NCLAT ने बिना उचित जांच-पड़ताल के बायजू के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया रोक दी थी, जो गलत है।
कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने NCLAT के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इतनी बड़ी कर्ज राशि के बावजूद केवल एक लेनदार के साथ निपटान को स्वीकार करना सही नहीं है। कोर्ट ने संकेत दिया कि वह इस विवाद को नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस भेज सकती है ताकि पूरे मामले की विस्तृत समीक्षा की जा सके।
Credit-ndtv