आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक आज से शुरू हो रही है, जो 7 से 9 अक्टूबर 2024 तक चलेगी। इस बैठक में रेपो रेट को लेकर फैसला लिया जाएगा। इस बार भी रेपो रेट में कोई कटौती की उम्मीद नहीं है। इसकी प्रमुख वजह खुदरा मुद्रास्फीति का बढ़ता स्तर और पश्चिम एशिया में बिगड़ते हालात हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन चुनौतियों के चलते केंद्रीय बैंक कटौती करने से हिचकिचा सकता है।
मुद्रास्फीति का बढ़ता स्तर
पिछले कुछ महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। हाल की रिपोर्टों के अनुसार, मुद्रास्फीति सितंबर और अक्टूबर में 5 प्रतिशत से ऊपर रह सकती है। इस परिदृश्य का असर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटी की कीमतों पर भी पड़ सकता है। इसके चलते आम लोगों पर महंगाई का बोझ बढ़ सकता है, जो आर्थिक स्थिरता के लिए एक चुनौती बन सकता है।
रेपो रेट का स्थिर रहना
आरबीआई ने फरवरी 2023 से रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा है। इस बार की बैठक में विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी प्रकार की कटौती की संभावना नहीं है। हालांकि, दिसंबर 2024 में कुछ ढील मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि रेपो रेट में परिवर्तन सीधे तौर पर उधारी की लागत और आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करता है।
एमपीसी में नए सदस्यों की भूमिका
इस महीने की शुरुआत में, सरकार ने आरबीआई की एमपीसी का पुनर्गठन किया था। नए सदस्यों में रामसिंह, सौगत भट्टाचार्य और नागेश कुमार शामिल हुए हैं। ये सदस्य पहले के सदस्यों आशिमा गोयल, शशांक भिड़े और जयंत आर वर्मा का स्थान लेंगे। नए सदस्यों की नियुक्ति से एमपीसी में विचारधारा और निर्णय प्रक्रिया में बदलाव की संभावना है, जो मौद्रिक नीति के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।
भू-राजनीतिक स्थिति का प्रभाव
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने बताया कि ईरान-इजरायल विवाद की स्थिति भी गहराई पकड़ सकती है। इससे न केवल कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, बल्कि इससे वैश्विक आर्थिक स्थिरता भी प्रभावित हो सकती है। ऐसे मामलों में, भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती और मुद्रास्फीति पर असर डालने वाले बाहरी कारक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
आरबीआई का तटस्थ रुख
सिग्नेचर ग्लोबल (इंडिया) के संस्थापक प्रदीप अग्रवाल का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा उठाए गए कदमों का अनुसरण नहीं करेगा। घरेलू आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए, आरबीआई को यथास्थिति बनाए रखने का सबसे उचित निर्णय लेना होगा। ऐसे में, भारतीय रिजर्व बैंक के निर्णयों का व्यापक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, और यह देखना होगा कि वे कैसे स्थिति को संभालते हैं।
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