Sukma से आई राहत की खबर – 16 नक्सलियों का आत्मसमर्पण

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक बड़ी सफलता सामने आई है। सुरक्षा बलों और राज्य सरकार की प्रभावी रणनीतियों के चलते कुल 16 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। इनमें से अधिकांश चिंतलनार थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले केरलापेंदा गांव से ताल्लुक रखते हैं। यह वही क्षेत्र है जहां नक्सल गतिविधियों ने दशकों से विकास को रोक रखा था। सरेंडर करने वालों में एक महिला सहित कई सक्रिय नक्सली शामिल हैं, जिन पर कुल मिलाकर 25 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
नक्सलियों के सरेंडर के पीछे क्या है ‘नियद नेल्लनार’ योजना?

राज्य सरकार की ‘नियद नेल्लनार’ (जिसका अर्थ है – आपका अच्छा गांव) योजना का उद्देश्य नक्सल प्रभावित गांवों को मुख्यधारा से जोड़ना है। यह योजना विशेष रूप से उन क्षेत्रों में चलाई जा रही है जो लंबे समय से नक्सल प्रभाव में रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया जाता है और गांवों में विकास परियोजनाएं चलाई जाती हैं।
किन-किन नक्सलियों ने किया सरेंडर, कितना था इनाम?

आधिकारिक जानकारी के अनुसार, सरेंडर करने वाले 16 नक्सलियों में से दो प्रमुख नक्सलियों पर आठ-आठ लाख रुपये का इनाम था। इनमें से एक महिला नक्सली रीता उर्फ डोडी सुक्की (36 वर्ष) है, जबकि दूसरा युवक राहुल पुनेम (18 वर्ष) है। इनके अतिरिक्त लेकम लखमा पर तीन लाख रुपये का इनाम था। तीन अन्य नक्सलियों पर दो-दो लाख रुपये का इनाम घोषित था। शेष नक्सलियों पर भी पुलिस रिकॉर्ड में गंभीर आरोप दर्ज हैं।
नक्सलमुक्त केरलापेंदा गांव को मिलेगा 1 करोड़ रुपये

सरकार ने घोषणा की है कि जिन गांवों को पूरी तरह नक्सलमुक्त घोषित किया जाएगा, उन्हें विकास योजनाओं के लिए एक करोड़ रुपये की विशेष अनुदान राशि दी जाएगी। इसी कड़ी में केरलापेंदा ग्राम पंचायत, जहां से 9 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, को भी यह राशि प्रदान की जाएगी। यह राशि सड़कों, स्वास्थ्य केंद्रों, शिक्षा, और अन्य आधारभूत संरचनाओं के विकास में खर्च की जाएगी।
पहले कौन सा गांव हुआ था नक्सलमुक्त?
केरलापेंदा गांव सुकमा का दूसरा ऐसा गांव है जिसे हाल ही में नक्सलमुक्त घोषित किया गया है। इससे पहले अप्रैल महीने में बड़ेसट्टी ग्राम पंचायत को भी नक्सलमुक्त घोषित किया गया था। वहां भी सुरक्षा बलों और प्रशासन की रणनीति के तहत सभी सक्रिय नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरेंडर का बढ़ता ट्रेंड
राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार अब तक बस्तर संभाग के सात जिलों में कुल 792 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। यह संख्या बताती है कि सरकार की नीति और सुरक्षाबलों की कार्यशैली असरदार साबित हो रही है। नक्सलियों को यह विश्वास दिलाया गया है कि आत्मसमर्पण के बाद उन्हें सुरक्षा और पुनर्वास मिलेगा।
राज्य सरकार की पुनर्वास योजना और अगला रोडमैप
सरेंडर करने वाले प्रत्येक नक्सली को सरकार की ओर से 50 हजार रुपये की सहायता राशि दी जाती है। इसके अलावा उनके पुनर्वास के लिए रोजगार, स्किल ट्रेनिंग और रहने की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाती है। राज्य सरकार का उद्देश्य है कि नक्सली हिंसा में शामिल रहे लोग फिर से समाज की मुख्यधारा में लौटें और शांतिपूर्ण जीवन जिएं।
सुरक्षा बलों की रणनीति और स्थानीय लोगों की भूमिका
इस बड़ी कामयाबी के पीछे सुरक्षा बलों की सूझबूझ और लगातार निगरानी का अहम योगदान है। CRPF, जिला पुलिस और राज्य बलों की संयुक्त टीमों ने इस ऑपरेशन को सफल बनाया। वहीं दूसरी ओर, स्थानीय ग्रामीणों की भूमिका भी उल्लेखनीय रही है। उन्होंने नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया और सरकार की योजनाओं में भागीदारी निभाई।
सुकमा में सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी, 16 खूंखार नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण; केरलापेंदा गांव नक्सलमुक्त घोषित
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सल विरोधी अभियान के तहत सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। यहां लंबे समय से सक्रिय 16 नक्सलियों ने पुलिस और सीआरपीएफ अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। ये सभी नक्सली कई नक्सली वारदातों में शामिल रहे हैं और इन पर कुल 25 लाख रुपये तक का इनाम भी घोषित था। सबसे खास बात यह है कि इनमें से 9 नक्सली एक ही गांव – केरलापेंदा के निवासी हैं। अब इस गांव को पूरी तरह नक्सलमुक्त घोषित कर दिया गया है, जो प्रशासन और स्थानीय नागरिकों के लिए बड़ी राहत की खबर है।
सरेंडर की वजह बनी ‘नियद नेल्लनार’ योजना

सुकमा जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) किरण चव्हाण ने मीडिया को जानकारी दी कि आत्मसमर्पण करने वाले इन नक्सलियों को सरकार की योजना ‘नियद नेल्लनार’ ने प्रभावित किया। यह योजना ऐसे गांवों के लिए है जिन्हें नक्सल प्रभाव से बाहर निकालकर उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाना है। इसका उद्देश्य यह है कि यदि कोई गांव पूरी तरह से नक्सलियों से मुक्त हो जाता है तो उसे विशेष विकास योजनाओं के तहत प्राथमिकता दी जाएगी।
‘नियद नेल्लनार’ का अर्थ है – “आपका अच्छा गांव”, और इसी भावना से प्रेरित होकर इन नक्सलियों ने अपने पुराने हिंसक रास्ते को छोड़ मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया।
सरेंडर करने वाले नक्सलियों पर घोषित था भारी इनाम
सरेंडर करने वाले 16 नक्सलियों में से दो सबसे ज्यादा वांछित थे:
- रीता उर्फ डोडी सुक्की (36 वर्ष) – ₹8 लाख का इनाम
- राहुल पुनेम (18 वर्ष) – ₹8 लाख का इनाम
इसके अलावा:
- लेकम लखमा (28 वर्ष) – ₹3 लाख का इनाम
- तीन अन्य नक्सलियों पर – ₹2 लाख-2 लाख का इनाम
इन सभी के खिलाफ विभिन्न थाना क्षेत्रों में हिंसात्मक गतिविधियों, सुरक्षा बलों पर हमले और ग्रामीणों को धमकाने जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे।
केरलापेंदा बना नक्सलमुक्त पंचायत
इन नक्सलियों के आत्मसमर्पण के बाद केरलापेंदा पंचायत को आधिकारिक रूप से नक्सलमुक्त घोषित कर दिया गया है। प्रशासन की ओर से ऐलान किया गया है कि इस ग्राम पंचायत को विकास कार्यों के लिए ₹1 करोड़ की विशेष सहायता राशि दी जाएगी।

इसके अंतर्गत सड़क निर्माण, स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, पेयजल सुविधा और अन्य मूलभूत सेवाओं को प्राथमिकता से लागू किया जाएगा।
सरकार दे रही है आर्थिक सहायता और पुनर्वास योजना
सरेंडर करने वाले नक्सलियों को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा:
- ₹50,000 की तत्काल आर्थिक सहायता
- रहने, खाने और रोजगार के लिए पुनर्वास योजना
- कौशल विकास ट्रेनिंग और सामान्य जीवन जीने की सुविधा
प्रदान की जा रही है। यह पहल राज्य में शांति स्थापना और युवाओं को नक्सली विचारधारा से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण साबित हो रही है।
बस्तर क्षेत्र में अब तक 792 नक्सली सरेंडर कर चुके
बस्तर क्षेत्र, जिसमें कुल 7 जिले शामिल हैं, पिछले कुछ वर्षों से नक्सल विरोधी अभियान का केंद्र रहा है। अधिकारियों के अनुसार, अब तक 792 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जो राज्य सरकार और सुरक्षा बलों के संयुक्त प्रयासों की सफलता का संकेत है।
इससे पहले बड़ेसट्टी गांव भी हुआ था नक्सलमुक्त
आपको बता दें कि इससे पहले अप्रैल 2025 में बड़ेसट्टी ग्राम पंचायत को नक्सलमुक्त घोषित किया गया था। वहां भी सभी सक्रिय नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। अब केरलापेंदा इस लिस्ट में शामिल होने वाला दूसरा गांव बन गया है।
यह बदलाव दर्शाता है कि सरकार की नीतियां और सुरक्षा बलों की रणनीति धीरे-धीरे रंग ला रही है। अब ग्रामीण इलाकों में भी लोग शांति और विकास की ओर बढ़ रहे हैं।
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