Justice :भारत को मिला नया CJI: जस्टिस बीआर गवई ने ली सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश की शपथ

Justice : भूषण रामकृष्ण गवई ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। शपथ समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और विदेश मंत्री एस. जयशंकर समेत कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे। शपथ लेते ही जस्टिस गवई ने अपनी मां कमलताई गवई के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, जो इस ऐतिहासिक पल की सबसे भावुक तस्वीर बन गई।
पहला बौद्ध CJI, दलित समुदाय से दूसरे न्यायाधीश
जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध CJI हैं और आजादी के बाद दलित समुदाय से आने वाले दूसरे व्यक्ति हैं जिन्हें देश की सबसे बड़ी न्यायिक कुर्सी मिली है। उनका कार्यकाल छह महीने का रहेगा, जो 23 नवंबर 2025 को समाप्त होगा।

मां बोलीं – “मेरा बेटा झुकता नहीं”
जस्टिस गवई की मां कमलताई गवई ने मीडिया से बातचीत में कहा, “मेरा बेटा डेयरडेविल है, उसे कोई नहीं झुका सकता। वह देश की सेवा पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करेगा।” उनका यह बयान जस्टिस गवई की पारिवारिक परवरिश और नैतिक मूल्यों की झलक देता है।
जस्टिस गवई का कानूनी सफर: अमरावती से सुप्रीम कोर्ट तक
जस्टिस बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की और शुरूआती दौर में पूर्व महाधिवक्ता राजा एस. भोसले के साथ काम किया। इसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की।
1990 के बाद वे मुख्य रूप से नागपुर बेंच में कार्यरत रहे और संवैधानिक व प्रशासनिक मामलों में विशेष अनुभव प्राप्त किया। 14 नवंबर 2003 को उन्हें बंबई हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 12 नवंबर 2005 को वह स्थायी न्यायाधीश बने।

चर्चित फैसले जिन्होंने बनाई पहचान
CJI गवई ने कई अहम मामलों में निर्णय दिए, जिनमें शामिल हैं:
- अनुच्छेद 370 को बरकरार रखना
- नोटबंदी के फैसले को संवैधानिक ठहराना
- SC कोटे में उपवर्गीकरण को मान्यता देना
- ‘बुलडोजर जस्टिस’ के तहत कड़े निर्णय
- तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी पर दो बार सख्त टिप्पणियां
- आप विधायक कविता को जमानत देना
इन फैसलों ने उन्हें एक निष्पक्ष, संवेदनशील और मजबूत विचारों वाले न्यायाधीश के रूप में स्थापित किया।
केवल छह महीने का कार्यकाल, लेकिन उम्मीदें बड़ी
हालांकि जस्टिस गवई का कार्यकाल मात्र छह महीनों का है, लेकिन न्यायपालिका में उनके अनुभव और विचारों को देखते हुए देश को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। संविधान, दलित अधिकार, सामाजिक न्याय और पारदर्शिता के मुद्दों पर उनका दृष्टिकोण न्यायिक व्यवस्था को नई दिशा दे सकता है।
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Source – Ndtv
Written by Pankaj Chaudhary