UP Elections से पहले दलितों को साधने की होड़! आंबेडकर के नाम पर श्रमिकों के लिए योगी सरकार का नया मास्टर प्लान
UP Elections उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी रणनीति तेज हो गई है। हर पार्टी की नजर दलित और पिछड़े वर्ग पर है, जो अब सत्ता की चाबी माने जा रहे हैं। ऐसे में बीजेपी की योगी सरकार ने अब इन वर्गों को साधने के लिए बाबा साहेब आंबेडकर के नाम पर श्रमिक सुविधा केंद्र बनाने का फैसला लिया है।

इस योजना के तहत, सरकार का फोकस उन मजदूरों पर है जो रोज़ी-रोटी के लिए गांव-कस्बों से लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद जैसे बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं। इन लोगों को न छत न चैन — बस काम की तलाश। अब सरकार इन्हें न सिर्फ छत देगी, बल्कि योजनाओं की जानकारी भी एक ही जगह मुहैया कराएगी।
बाबा साहेब के नाम पर बनेगा सुविधा केंद्र, एक छत के नीचे मिलेगी हर मदद
सरकार की योजना के मुताबिक, पहले चरण में 17 नगर निगम क्षेत्रों और नोएडा में श्रमिक सुविधा केंद्र बनाए जाएंगे। इनका नाम ‘बाबा साहेब आंबेडकर श्रमिक सुविधा केंद्र’ होगा। ये केंद्र सिंगल विंडो सिस्टम की तर्ज पर विकसित किए जाएंगे।
यहां मजदूरों को मिलेंगी ये सुविधाएं:
- स्वच्छ पीने का पानी
- टॉयलेट और स्नानागृह
- श्रमिक पंजीकरण
- सरकारी योजनाओं की जानकारी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को श्रम विभाग ने इसका विस्तृत ब्लूप्रिंट भी पेश किया है। लक्ष्य है— असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सरकार की मुख्यधारा से जोड़ना।
काम की तलाश में भटकते मजदूर, सबसे बड़ी समस्या: सिर पर छत
लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद जैसे शहरों में रोज़ाना हजारों लोग काम की तलाश में आते हैं। इनमें से अधिकांश लोगों के पास न तो रहने की जगह होती है और न ही कोई स्थायी ठिकाना। दिनभर की मेहनत के बाद रात फुटपाथ या किसी असुरक्षित स्थान पर गुजारनी पड़ती है।
मजदूरी से जो पैसा मिलता है, वह खाने और परिवार के लिए ही कम पड़ जाता है। ऐसे में किराये पर कमरा लेना हर किसी के बस की बात नहीं। इन्हीं हालातों को देखते हुए योगी सरकार ने अब एक और योजना तैयार की है।
विश्वकर्मा श्रमिक सराय योजना: अब खुलेगा मजदूरों के लिए ट्रांजिट हॉस्टल

सरकार ने श्रमिकों की अस्थायी आवास जरूरतों को ध्यान में रखते हुए “विश्वकर्मा श्रमिक सराय योजना” की शुरुआत की है। इसके तहत शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में ट्रांजिट हॉस्टल बनाए जाएंगे, जिनमें होंगी ये सुविधाएं:
- साफ-सुथरे टॉयलेट
- स्नानागृह
- क्लॉक रूम
- अस्थायी निवास की सुविधा
इससे न केवल मजदूर सुरक्षित रह सकेंगे, बल्कि अगली सुबह वे नई ऊर्जा के साथ काम की तलाश में निकल सकेंगे। सरकार की योजना है कि भविष्य में इन केंद्रों का विस्तार हर बड़े औद्योगिक और नगरीय क्षेत्र तक किया जाएगा।
सत्ता की चाभी अब OBC और दलित वर्ग के पास, इसलिए हो रही सियासी चहल-पहल
वर्तमान समय में दलित और पिछड़े वर्ग की जनसंख्या और वोटबैंक दोनों ही अहम हैं। चाहे लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव— परिणामों पर सबसे बड़ा असर इसी वर्ग का होता है। यही कारण है कि हर पार्टी अब इस वर्ग को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है।
योगी सरकार का यह कदम सिर्फ श्रमिक कल्याण नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति का भी हिस्सा माना जा रहा है। बाबा साहेब आंबेडकर का नाम जोड़कर सरकार न सिर्फ सम्मान देने का संदेश दे रही है, बल्कि यह भी दिखाना चाहती है कि दलितों और श्रमिकों का असली भला वही कर सकती है।
दलितों को साधने की सियासत: योगी सरकार का नया फोकस आंबेडकर और श्रमिक वर्ग पर
उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनावों की आहट अब साफ सुनाई देने लगी है। सभी सियासी दलों की निगाह अब उस वर्ग पर है, जो चुनावी नतीजों को पलटने की ताकत रखता है — दलित और पिछड़े समुदाय के मतदाता। इस बार योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इन वर्गों को सीधे साधने के लिए एक नया कदम उठाया है।
सरकार ने ऐलान किया है कि प्रदेश के 17 नगर निगम क्षेत्रों और नोएडा में ‘बाबा साहेब आंबेडकर श्रमिक सुविधा केंद्र’ बनाए जाएंगे। ये केंद्र उन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए होंगे, जो बेहतर जीवन की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन करते हैं।
क्या है श्रमिक सुविधा केंद्र योजना? एक नज़र में
इन सुविधा केंद्रों को सिंगल विंडो सिस्टम के रूप में विकसित किया जाएगा। यानी, श्रमिकों को सरकारी योजनाओं की जानकारी से लेकर, पंजीकरण, स्वच्छ पानी, टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधाएं एक ही जगह मिलेंगी।
योजना की मुख्य विशेषताएं:
- केंद्रों का नाम बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के नाम पर रखा जाएगा
- श्रमिकों के लिए पंजीकरण और काउंसलिंग की व्यवस्था
- सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की प्रक्रिया यहीं से होगी
- पेयजल, शौचालय और विश्राम की व्यवस्था
इस योजना का मकसद असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना और उन्हें सरकार की योजनाओं का हकदार बनाना है।

रोज़ी-रोटी की तलाश में शहरों में पलायन, पर छत एक बड़ी समस्या
उत्तर प्रदेश के छोटे कस्बों और गांवों से बड़ी संख्या में लोग लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद और कानपुर जैसे शहरों में काम की तलाश में आते हैं। इनमें से अधिकतर निर्माण मजदूर, दिहाड़ी श्रमिक, रिक्शा चालक और घरेलू कामकाज करने वाले होते हैं।
इनकी सबसे बड़ी समस्या होती है — रहने की जगह। कम मजदूरी और महंगे किराए के कारण लाखों लोग फुटपाथ, सड़कों या असुरक्षित ठिकानों पर रात गुजारने को मजबूर हैं।
एक कहावत है — “नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या”, यही हाल इन मजदूरों का होता है। पेट भरने के लिए जो कमाते हैं, उससे सिर ढकने की भी व्यवस्था नहीं हो पाती।

अब ‘विश्वकर्मा श्रमिक सराय योजना’ से मिलेगी राहत
इस गंभीर समस्या का समाधान निकालते हुए सरकार ने ‘विश्वकर्मा श्रमिक सराय योजना’ भी शुरू की है। इसके तहत प्रदेश भर में ट्रांजिट हॉस्टल बनाए जाएंगे, जहां अस्थायी रूप से श्रमिक रुक सकेंगे।
हॉस्टल में होंगी ये सुविधाएं:
- साफ-सुथरे टॉयलेट और स्नानागृह
- क्लॉक रूम और विश्राम क्षेत्र
- अस्थायी आवास की व्यवस्था
- अगले दिन काम पर जाने से पहले साफ-सुथरे माहौल में विश्राम
सरकार का मानना है कि अगर मजदूरों को सुरक्षित ठिकाना मिलेगा तो उनकी उत्पादकता भी बढ़ेगी और वे समाज की मुख्यधारा में बेहतर योगदान दे पाएंगे।
राजनीति की चाल: बाबा साहेब के नाम से जोड़ना एक सोची-समझी रणनीति?
साफ है कि इस पूरी योजना में आंबेडकर का नाम जोड़ना महज संयोग नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। बाबा साहेब आंबेडकर दलित समाज के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं और उनका नाम दलित वोट बैंक को आकर्षित करने का एक प्रभावी तरीका है।
योगी सरकार यह संदेश देना चाहती है कि वह दलित और श्रमिक हितों की सच्ची हितैषी है। आने वाले चुनावों में इसका राजनीतिक लाभ उठाना भी तय है।
यह वही सरकार है जिसने इससे पहले अंबेडकर ग्राम योजना, भीमराव आंबेडकर महासभा भवन, और डॉ. अंबेडकर स्मारक जैसी योजनाएं शुरू की थीं।
विपक्ष का क्या है रुख?
हालांकि अभी तक विपक्ष की ओर से इस योजना पर कोई बड़ा बयान नहीं आया है, लेकिन चुनावी साल में इसका सियासी विरोध होना तय है। समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस जैसी पार्टियां योगी सरकार पर दलितों को सिर्फ वोट बैंक समझने का आरोप लगा सकती हैं।
बीएसपी प्रमुख मायावती पहले ही कई बार कह चुकी हैं कि बीजेपी केवल नाम पर राजनीति करती है, जबकि ज़मीन पर काम नहीं होता।
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