25 साल पहले मिली थी कचरे में, आज सरकारी अफसर बनी माला पापलकर
कभी जिंदगी की शुरुआत कूड़े के ढेर से हुई थी, आज उसी जिंदगी ने मेहनत से एक ऐसा मुकाम छू लिया है, जो मिसाल बन चुका है। महाराष्ट्र की दृष्टिबाधित माला पापलकर ने एमपीएससी क्लर्क परीक्षा पास कर यह साबित कर दिया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं होती।
जलगांव स्टेशन से शुरू हुई थी माला की संघर्ष यात्रा
सालों पहले जलगांव रेलवे स्टेशन पर एक नवजात बच्ची को कचरे के ढेर में पाया गया था। वह न तो देख सकती थी, न बोल सकती थी और न ही दुनिया को जानती थी। पुलिस ने उसे बाल सुधार गृह पहुंचाया और फिर अमरावती जिले के परतवाड़ा में स्थित एक विशेष पुनर्वास केंद्र भेजा गया। यहीं से उसकी जिंदगी को नई दिशा मिली।
शंकरबाबा ने दिया नया नाम, नई पहचान
परतवाड़ा के उस पुनर्वास केंद्र में पद्म पुरस्कार विजेता शंकरबाबा पापलकर ने माला की प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने उसे ब्रेल सिखाया, पढ़ाया और समाज में आत्मनिर्भर बनने के लिए तैयार किया। माला को ‘पापलकर’ उपनाम भी उन्हीं से मिला, जो अब उसकी पहचान बन गया है।
MPSC परीक्षा पास कर पाई कलेक्टर ऑफिस में जगह
माला ने एमपीएससी की क्लर्क-कम-टाइपिस्ट परीक्षा (ग्रुप C) पास की और अब उसकी पोस्टिंग नागपुर कलेक्टर ऑफिस में बतौर राजस्व सहायक के रूप में होने जा रही है। कुछ प्रशासनिक कारणों से उसकी नियुक्ति में देरी हुई, लेकिन अब वह अगले 8-10 दिनों में कामकाज संभालने को तैयार है।
प्रोफेसर अमोल पाटिल ने उठाया कोचिंग का जिम्मा
माला की सफलता के पीछे एक और प्रेरणादायक शख्सियत हैं – यूनिक एकेडमी, अमरावती के निदेशक प्रो. अमोल पाटिल। उन्होंने माला की कोचिंग की जिम्मेदारी ली और उसे तैयार किया। इससे पहले माला तहसीलदार पद के लिए भी दो बार परीक्षा दे चुकी थी, लेकिन सफल नहीं हो पाई। बावजूद इसके उसने हार नहीं मानी और अंततः क्लर्क परीक्षा में सफलता पाई।
25 सालों की तपस्या हुई सफल
माला की सफलता सिर्फ उसकी नहीं बल्कि उस पुनर्वास केंद्र और समाज के हर उस व्यक्ति की भी जीत है, जिन्होंने उसे बढ़ने का मौका दिया। अब जब वह एक सम्मानित पद पर नियुक्त हो रही है, तो परतवाड़ा स्थित उसका वह आश्रय केंद्र भी गर्व से भर उठा है।
शिक्षकों ने किया सम्मानित, बनी प्रेरणा की मिसाल
माला को उसकी इस उपलब्धि पर सम्मानित किया गया। प्रोफेसर अमोल पाटिल ने कहा कि उसकी सफलता बेहद संतुष्टि देने वाली है और यह हजारों प्रतियोगियों के लिए एक प्रेरणा है। उनके संस्थान के अन्य 6-7 छात्रों ने भी राजस्व सहायक पद हासिल किया है, लेकिन माला की कहानी सबसे खास है।
निष्कर्ष: हौसलों की उड़ान के आगे कोई भी मजबूरी छोटी है
माला पापलकर की कहानी बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो दुनिया की कोई भी चुनौती इंसान को रोक नहीं सकती। दृष्टिहीनता, अनाथपन, और समाज की उपेक्षा को पीछे छोड़ माला ने यह दिखा दिया कि असली सफलता वहीं है जो संघर्ष के रास्तों से गुजरकर मिलती है।
Source – Ndtv
Written by – Pankaj Chaudhary