Alert माता-पिता की यह छोटी सी गलती बन सकती है बड़ी परवरिश की नाकामी!
हर माता-पिता की यही ख्वाहिश होती है कि उनका बच्चा एक बेहतर इंसान बने, अच्छे संस्कार सीखे और अनुशासित जीवन जिए। लेकिन कई बार हम अपने बच्चों के लिए जितनी मेहनत करते हैं, उसका उल्टा असर पड़ता है। क्यों? क्योंकि हम अनजाने में एक ऐसी Parenting Mistake कर जाते हैं, जो बच्चे के व्यवहार और सोच को पूरी तरह प्रभावित कर देती है।
पैरेंटिंग एक्सपर्ट अर्पिता अक्षय पिथावा के मुताबिक, यह एक गलती माता-पिता के बीच की असहमति या टीम वर्क की कमी होती है। जब एक पैरेंट कुछ कहता है और दूसरा उसका उल्टा बोलता है, तो बच्चा भ्रमित हो जाता है और उसका भरोसा कमजोर होने लगता है।

बच्चे को जब दिखने लगता है पैरेंट्स में विरोधाभास
अक्सर घरों में ऐसा होता है कि एक पैरेंट नियम बनाता है और दूसरा उन्हें तोड़ता है।
जैसे:
- पिता कहते हैं: “7 बजे के बाद बाहर नहीं जाना।”
मां कहती हैं: “अरे जाने दो, थोड़ा खेल लेगा।” - मां कहती हैं: “हफ्ते में सिर्फ संडे को ही चॉकलेट मिलेगी।”
पिता कहते हैं: “इससे क्या फर्क पड़ेगा, अभी दे दो।”
इससे बच्चा साफ समझ जाता है कि माता-पिता एक टीम नहीं हैं। वो जान लेता है कि किस पैरेंट को मना कर के क्या मिल सकता है और कब कौन उसकी बात मान लेगा। यही से बच्चे में जिद, मनमानी और डिसिप्लिन की कमी शुरू हो जाती है।
एक्सपर्ट की सलाह: बनें एक मजबूत टीम
अर्पिता पिथावा कहती हैं कि “Parenting तब ही सफल हो सकती है जब दोनों पैरेंट्स एक पेज पर हों।”
- अगर एक कोई रूल बना रहा है, तो दूसरा पैरेंट उसका समर्थन करे।
- आपसी बातचीत के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचे ताकि बच्चे के सामने कोई विरोधाभास न हो।
- बच्चे को यह भरोसा होना चाहिए कि उसके माता-पिता एक मजबूत और एकजुट टीम हैं।

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हर माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश को लेकर बेहद सजग रहते हैं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा न सिर्फ पढ़ाई में अव्वल हो, बल्कि एक जिम्मेदार, विनम्र और संतुलित इंसान भी बने। लेकिन parenting सिर्फ किताबों में लिखी गई बातों से सफल नहीं होती, बल्कि व्यवहारिक जीवन में लिए गए छोटे-छोटे निर्णय ही बच्चे की सोच और व्यक्तित्व पर गहरा असर डालते हैं। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि कई बार माता-पिता न चाहते हुए भी ऐसी अनदेखी या असहमति कर बैठते हैं जो बच्चों के आचरण और आत्मनिष्ठा पर सीधा प्रहार करती है।
पैरेंटिंग को लेकर मशहूर एक्सपर्ट अर्पिता अक्षय पिथावा का कहना है कि आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में माता-पिता की सबसे बड़ी गलती यह होती है कि वे एक-दूसरे के निर्णयों को सामने ही काट देते हैं। एक कहता है “अब बाहर नहीं जाना है”, तो दूसरा कहता है “जाने दो यार, खेलने से क्या बिगड़ेगा?” यही विरोधाभास बच्चे के भीतर कंफ्यूजन की भावना को जन्म देता है। बच्चा सोचने लगता है कि कौन सही है और कौन गलत? नतीजतन, वह अपनी स्वेच्छा से निर्णय लेना शुरू कर देता है, चाहे वह माता-पिता की बात के विपरीत ही क्यों न हो।
इस तरह का व्यवहार लंबे समय तक चलता रहे तो बच्चे के भीतर अनुशासनहीनता, जिद, तर्कहीन व्यवहार और आत्म-निर्णय की गलत प्रवृत्ति विकसित होने लगती है। बच्चा सोचता है कि जब मां-पापा एक-दूसरे के विपरीत राय रखते हैं, तो मैं क्यों किसी की भी बात मानूं? इससे न केवल उसके विचारों में भ्रम पैदा होता है, बल्कि उसकी मानसिकता भी प्रभावित होती है।
अक्सर पैरेंट्स यह मान लेते हैं कि उनका लाड़-प्यार बच्चे के मानसिक विकास में मदद करेगा, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि मूल्य आधारित परवरिश और स्पष्ट सीमाएं बच्चे को अधिक सुरक्षित, संतुलित और जिम्मेदार बनाती हैं। एकजुट पैरेंटिंग वह नींव है, जिस पर बच्चे का सम्पूर्ण व्यक्तित्व खड़ा होता है। अगर माता-पिता खुद एक-दूसरे के निर्णयों का सम्मान करें, तो बच्चे भी वही संस्कार ग्रहण करते हैं। उन्हें यह संदेश मिलता है कि हर निर्णय सोच-समझकर और एकमत से लिया गया है।
इसलिए, यदि आप एक सफल और सकारात्मक पैरेंटिंग चाहते हैं तो यह अत्यंत आवश्यक है कि आप अपने जीवनसाथी के साथ सुसंगत (consistent) रहें। नियम बनाएं तो दोनों मिलकर, अनुशासन तय करें तो एकजुट होकर। यही वह रणनीति है जो बच्चे को न केवल आज का, बल्कि भविष्य का सशक्त और संतुलित नागरिक बना सकती है।
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