Akhilesh Yadav पहले ‘दलित vs ठाकुर’, फिर ‘यादव बनाम ब्राह्मण’, अब बता रहे PDA वादी, ये कैसी दुविधा में फंसे हैं अखिलेश यादव?

उत्तर प्रदेश की सियासत में अखिलेश यादव लगातार सोशल इंजीनियरिंग के नए फार्मूले तलाश रहे हैं। पहले उन्होंने ‘दलित बनाम ठाकुर’, फिर ‘यादव बनाम ब्राह्मण’ ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई। अब वो PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक गठजोड़ को आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं। लेकिन बार-बार की लाइन बदलने से समाजवादी पार्टी की वैचारिक दिशा पर सवाल उठ रहे हैं। क्या अखिलेश की यह रणनीति 2027 तक कोई स्थायी असर छोड़ पाएगी?

लखनऊ. 2017 में यूपी की सत्ता से बेदखल होने के बाद से ही समाजवादी पार्टी के मुखिया अलग-अलग गठबंधन और नए-नए प्रयोग करते दिख रहे हैं. 2017 में मिली हार के बाद उन्होंने ठाकुर बनाम ब्राह्मण का प्रयोग किया था. हालांकि, इसका कोई विशेष फायदा न तो उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मिला और ना ही 2022 के विधानसभा चुनाव में. 2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले पर 37 सीट जीतने के बाद अब अखिलेश यादव नया प्रयोग करने में जुटे हैं. इस बार वे ‘दलित बनाम ठाकुर’ और अब इटावा कथावाचक के साथ बदसलूकी मामले को ‘यादव बनाम ब्राह्मण’ का रंग दे रहे हैं. जिसके बाद बीजेपी उन पर जाति की राजनीति का आरोप लगा रही है.
हालांकि, इस प्रयोग में भी अखिलेश यादव की दुविधा साफ नजर आ रही हैं. दुविधा यह है कि वे PDA में A का मतलब अल्पसंख्यक भी बताते हैं और फिर अगड़ा भी बता देते हैं. यानी कि वे ठाकुर और ब्राह्मणों का वोट लेना भी चाहते हैं. लेकिन चुनौती यह है कि अगर वे यादव-ब्राह्मण विवाद में ब्राह्मणों का पक्ष लेते हैं तो उनका कोर वोटर यादव नाराज हो जाएगा. यही वजह है कि उनके 52वें जन्मदिन पर लगे एक पोस्टर में लिखा गया है कि ‘हम जातिवादी नहीं, PDA वादी हैं.”

बीजेपी का भी पोस्टर से पलटवार
उधर बीजेपी की तरफ से भी इस पोस्टर पर करारा प्रहार किया गया. लखनऊ में बीजेपी युवा मोर्चा के महामंत्री अमित त्रिपाठी ने पोस्टर लगवाए. इस पोस्टर में सपा मुखिया पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. पोस्टर में लिखा गया है कि ‘दलितों से लाभ लेने वाले, ब्राह्मणों के नाम पर वोट लेने वाले, पिछड़ों को सिर्फ वोट बैंक समझने वाले, गुंडे और बदमाशों की फौज के लीडर, माफियाओं का हर सुख-दुख में साथ देने वाले, उत्तर प्रदेश को आपराधिक प्रदेश में तब्दील करने वाले नेता श्री अखिलेश यादव जी को जन्मदिवस की ढेरों शुभकामनाएं.’
क्या है अखिलेश की चुनौती?

दरअसल, पहले राणा सांगा विवाद पर और सपा सांसद रामजीलाल सुमन के घर करणी सेना का हमला मामले को अखिलेश यादव ने दलित बनाम ठाकुर बनाने की कोशिश की और अपने सांसद के साथ मजबूती से खड़े रहे. जिसके बाद ठाकुर समाज में अखिलेश के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी देखने को मिली. अब इटावा में यादव कथावाचक के साथ बदसलूकी मामले में समाजवादी पार्टी अपने कोर वोटर्स के साथ है. लेकिन अखिलेश के लिए चुनौती यह है कि भले ही वह अपने यादव वोट बैंक के साथ हों, पर बीजेपी नरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है कि नॉन ओबीसी और सवर्ण वर्ग को समाजवादी पार्टी तवज्जो नहीं देती। यह स्थिति 2027 के चुनाव में चुनौतीपूर्ण हो सकती है.
बीजेपी के लिए एडवांटेज कैसे?
अखिलेश यादव की यह दुविधा बीजेपी के लिए एडवांटेज साबित हो सकती है, क्योंकि 2017 के चुनाव में भी पार्टी ने समाजवादी पार्टी को मुस्लिम और यादवों को तवज्जो देने का आरोप लगाकर नॉन नॉन ओबीसी और सवर्ण वर्ग को अपने पाले में किया था. कमोबेश यही स्थिति 2022 में भी रही. अब एक बार फिर बीजेपी अखिलेश यादव को सवर्ण और नॉन ओबीसी विरोधी बताकर नई सियासी पिच तैयार करना छह रही है.