राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष को बड़ा झटका लगा है। मौजूदा शीत सत्र में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना संभव नहीं है। इसके पीछे तकनीकी कारण है कि इस प्रस्ताव के लिए कम से कम 14 दिन का नोटिस देना जरूरी होता है, जबकि शीत सत्र के समाप्त होने में अब केवल 10 दिन बचे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह अविश्वास प्रस्ताव महज एक राजनीतिक दांव-पेंच है, जिसे वास्तविकता में अमल में लाना अभी संभव नहीं है।
धनखड़ पर विपक्ष का क्या आरोप है?
विपक्षी दलों ने ‘इंडिया’ गठबंधन के बैनर तले जगदीप धनखड़ पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि धनखड़ सदन में पक्षपात करते हैं और BJP के प्रति झुकाव रखते हैं। विपक्ष का दावा है कि सदन में विपक्षी सांसदों को बोलने का पर्याप्त मौका नहीं दिया जाता। कई बार विपक्षी नेताओं का माइक बंद कर दिया जाता है, और उन पर तीखी टिप्पणियां की जाती हैं। इन आरोपों के साथ विपक्ष ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बनाई थी।
राज्यसभा सभापति को हटाने की प्रक्रिया क्या है?
राज्यसभा सभापति को हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 67(b) में स्पष्ट की गई है। इसके तहत:
- प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ नोटिस देना आवश्यक है।
- नोटिस के बाद, प्रस्ताव पर विचार करने के लिए कम से कम 14 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
- राज्यसभा में साधारण बहुमत से प्रस्ताव पास करना होता है।
- प्रस्ताव पास होने के बाद इसे लोकसभा में भी पेश किया जाता है और वहां से मंजूरी लेनी होती है।
मौजूदा शीत सत्र में इन नियमों का पालन करना समय की कमी के कारण संभव नहीं है।
क्या राज्यसभा में नंबर गेम विपक्ष के पक्ष में है?
राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं। इनमें से 108 सांसद NDA के पास हैं, जबकि विपक्ष के पास केवल 82 सांसद हैं। इसके अलावा, AIADMK, YSRCP और BJD जैसे दलों ने अब तक अपने रुख को स्पष्ट नहीं किया है। इस गणित को देखते हुए विपक्ष के लिए बहुमत जुटाना एक बड़ी चुनौती है।
विपक्ष का कदम: राजनीतिक रणनीति या गंभीर प्रयास?
‘इंडिया’ गठबंधन ने जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान किया था। इस प्रस्ताव पर 50 से अधिक सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। गठबंधन के नेताओं ने दावा किया है कि इस मुद्दे पर सभी विपक्षी दल एकमत हैं। हालांकि, शीत सत्र में समय की कमी और आवश्यक प्रक्रियाओं के चलते यह प्रस्ताव केवल एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि विपक्ष इस कदम से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव लाने में विफलता ने उनकी तैयारी और गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या विपक्ष अपनी रणनीति में सफल होगा?
विपक्ष का यह कदम मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में एक बड़ा दांव है। जहां एक ओर सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश हो रही है, वहीं विपक्ष के इस प्रस्ताव को पेश करने में असफल रहने से उनकी रणनीति कमजोर पड़ सकती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष अपने आरोपों को कितनी मजबूती से पेश कर पाता है और जनता के बीच इसका क्या प्रभाव पड़ता है।