BJP MP controversial statement – “महिलाएं झांसी की रानी बनतीं तो बच सकती थीं जानें”

भिवानी (हरियाणा): जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में जहां देश ने कई मासूम सैलानियों को खो दिया, वहीं अब इस दर्दनाक घटना को लेकर भाजपा सांसद रामचंद्र जांगड़ा का बयान सामने आया है, जिसने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
“हाथ जोड़ने की जगह मुकाबला करतीं तो कम मौतें होतीं” – सांसद जांगड़ा
भिवानी में मीडिया से बात करते हुए राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने कहा कि यदि पहलगाम में मौजूद महिलाएं आतंकियों के सामने झांसी की रानी या अहिल्याबाई होल्कर जैसी वीरता दिखातीं, तो हमले में मरने वालों की संख्या कम होती। उन्होंने कहा कि यदि सैलानी डंडा या लाठी लेकर आतंकियों पर टूट पड़ते, तो 26 की बजाय शायद 5-6 ही जानें जातीं। – Ram Chander Jangra Controversial Statement
वीरांगना बनने की सीख, सुहाग खोने वाली महिलाओं पर भी टिप्पणी
सांसद ने यहां तक कह दिया कि जिन महिलाओं ने अपने पति को खोया, अगर उन्होंने इतिहास में अहिल्याबाई या झांसी की रानी की कहानियां पढ़ी होतीं, तो वे चुपचाप हाथ नहीं जोड़तीं। उन्होंने कहा, “उनमें वीरांगना का जज्बा नहीं था, जोश नहीं था, इसलिए इतने लोग मारे गए।” – BJP Mp Controversial Statement On Pahalgam Attack

अग्निवीर योजना का किया समर्थन – BJP MP Ram Chander Jangra
रामचंद्र जांगड़ा ने इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अग्निवीर योजना की तारीफ करते हुए कहा कि यह युवाओं में वीरता की भावना जाग्रत करने का माध्यम है। उन्होंने कहा, “अगर यात्रियों को इस तरह की ट्रेनिंग मिली होती, तो वे आतंकियों से लड़ सकते थे।”
कांग्रेस नेताओं पर निशाना

सांसद ने रोहतक में डीसी और कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा के बीच हुई बहस को लेकर हुड्डा को अहंकारी बताया। वहीं, कुरुक्षेत्र में कांग्रेस विधायक अशोक अरोड़ा से भाजपा पार्षद द्वारा की गई मारपीट को गलत ठहराया।
राहुल गांधी को नहीं लेना चाहिए गंभीरता से – जांगड़ा
रामचंद्र जांगड़ा ने राहुल गांधी पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि वह विदेशों में जाकर देश की छवि खराब करते हैं। उन्होंने शशि थरूर की तारीफ करते हुए कहा कि थरूर पाक की असलियत को वैश्विक मंचों पर उजागर कर रहे हैं।

विवाद के घेरे में बयान
रामचंद्र जांगड़ा का यह बयान कई वर्गों में आक्रोश पैदा कर रहा है। एक ओर जहां महिलाएं इस बयान को अपमानजनक बता रही हैं, वहीं राजनीतिक गलियारों में इसे असंवेदनशील और पीड़ितों के घावों पर नमक छिड़कने जैसा माना जा रहा है।
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