Monday, July 7, 2025

Siddaramaiah vs DK Shivakumar: Karnataka में Crisis तो टला, लेकिन Congress में Power Struggle जारी!

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Siddaramaiah vs DK Shivakumar: कांग्रेस के लिए एक के बाद एक राज्यों में सत्ता का नुकसान आंतरिक कलह का नतीजा बन गया है। कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और हिमाचल जैसे राज्यों में गुटबाज़ी ने पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया है। क्या कर्नाटक भी अब उसी राह पर है?

Siddaramaiah vs DK Shivakumar: कर्नाटक में फिलहाल राजनीतिक संकट थमा जरूर है,

कांग्रेस ने टाली टकराव की टक्कर, लेकिन संकट अब भी बना हुआ है कांग्रेस ने कर्नाटक में सिद्धारमैया और डी. के. शिवकुमार के बीच चल रहे राजनीतिक तनाव को फिलहाल शांत जरूर कर दिया है। अब यह तय हो चुका है कि सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे, और उनकी कुर्सी को ले कर उठ रही आशंकाएं भी फिलहाल थम गई है। मगर बड़ा सवाल यही है – क्या यह समाधान स्थायी है?
यह कोई पहली बार नहीं है जब कांग्रेस को एक ही राज्य में आंतरिक गुटबाजी का सामना करना पड़ा हो। कर्नाटक का मौजूदा मामला भी उसी पुराने पैटर्न को दोहराता नज़र आ रहा है, जिसमें दो या दो से अधिक वरिष्ठ नेता आपसी प्रतिस्पर्धा में पार्टी को संकट में डाल देते हैं।

इसका ताज़ा उदाहरण हरियाणा विधानसभा चुनाव (अक्टूबर 2024) में देखने को मिला, जहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के बीच खींचतान इतनी बढ़ गई कि पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी। कर्नाटक में भी अगर कांग्रेस समय रहते भीतरघात को नहीं सुलझा पाई, तो इसके परिणाम भी कुछ अलग नहीं होंगे।

गुटबाजी में उलझी कांग्रेस, बीजेपी ने उठाया सीधा फायदा

हरियाणा में कांग्रेस नेतृत्व ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा को मंच पर भले ही एक साथ लाकर हाथ मिलवा दिया हो, लेकिन आपसी मतभेद इतने गहरे थे कि दिलो की दूरी कम नहीं हो पाई। नतीजतन, आन्तरिक कलह और गुटबाजी से जूझ रहे कांग्रेस को भारी नुकसान झेलना पड़ा और बीजेपी को चुनावी जीत मिल गई।

Siddaramaiah
Siddaramaiah vs DK Shivakumar

कांग्रेस हाइकमान की ओर से दोनों नेताओं को एक मंच पर लाने की तमाम कोशिशें भी बेअसर रही। परिणामस्वरूप , पार्टी की अंदरूनी फूट ने बीजेपी को मजबूत बना दिया।
राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की यही कहानी दोहराई गई। दोनों राज्यों में बड़े नेता आपसी टकराव में इस कदर उलझे रहे पार्टी संगठन कमजोर पड़ गया। खासकर राजस्थान में, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मतभेद जगजाहिर हो गए। हालात ऐसे बन गए कि दोनों नेता एक दूसरे पर सार्वजनिक मंचों से आरोप -प्रत्यारोप करने लगे – मानो वे एक ही पार्टी के नहीं बल्कि विरोधी दलों के प्रतिनिधि हो।

गहलोत सरकार की कमान संभाल हुए थे, जबकि सचिन पायलट युवा चेहरा और जनसमर्थन जुटाने में माहिर नेता थे। मगर बीजेपी को हारने के बजाय, दोनों नेता एक दूसरे के प्रत्याशियों को हराने की रणनीति में लग ज्ञात। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला, और कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा।

नहीं सुलझा गहलोत -पायलट विवाद, कांग्रेस सत्ता से हुई बाहर

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लंबे समय से चला आ रहा टकराव पार्टी के लिए भरी पड़ा। गहलोत बार बार सचिन पायलट पर सरकार गिराने की साज़िश रचने का आरोप लगाते रहे। एक बार तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि विधायकों की घेराबंदी तक करनी पड़ी।

कांग्रेस हाइकमान ने दोनों नेताओं में सुलह कराने की भरपूर कोशिश की। यहां तक कि गहलोत को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भी रखा गया, ताकि राजस्थान की कमान पायलट को सौंपी जा सके। लेकिन गहलोत ने यह जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया।

बाद में कांग्रेस नेतृत्व ने मल्लिकार्जुन खड़गे और 2 अन्य वरिष्ठ नेताओं को जयपुर भेजा, ताकि दोनों पक्षों के बीच बैठक कर कोई समाधान निकाला जा सके। लेकिन बैठक उस समय नहीं हो सकी क्योंकि गहलोत तय कार्यक्रम के दौरान कहीं और चले गए।

इस घटनाओं और आपसी खींचतान का सीधा असर पार्टी के चुनाव परिणामों पर पड़ा। कांग्रेस को राजस्थान विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और वह सता से बाहर हो गई।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी गुटबाजी ने कांग्रेस को पहुंचाया नुकसान

मध्य प्रदेश में 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। राज्य में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पार्टी के दो वरिष्ठ चेहरे थे। हालांकि, कमलनाथ 18 महीने तक मुख्यमंत्री रह चुके थे, लेकिन उनकी सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत के बाद गिर गई और बीजेपी की सता में वापसी हुई, जहां शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बने।

Siddaramaiah
Siddaramaiah vs DK Shivakumar

जब 2023 में दोबारा चुनाव हुए, तब भले ही गहलोत – पायलट जैसा खुला टकराव नहीं दिखा लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच वंचित तालमेल की कमी साफ नजर आई। यह समन्वय की कमी ही थी, जिसने कांग्रेस को एकजुट होकर चुनाव लड़ने से रोका और पार्टी को एक बार फिर सत्ता से बाहर कर दिया।

कमलनाथ के राजनीतिक पारी लगभग समाप्त मानी जा रही है, जबकि दिग्विजय सिंह फिलहाल राज्यसभा में सक्रिय हैं। चुनावी हार के बाद कांग्रेस ने राज का नेतृत्व युवा चेहरे जीतू पटवारी और उमंग सिंघर को सांप दिया। आज मध्य प्रदेश में बीजेपी के मोहन यादव मुख्यमंत्री हैं।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने पिछली बार प्रचंड बहुमत हासिल किया था, और किसी को यह अंदाजा नहीं था कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस बार चुनाव हार जाएंगे। लोगों को लग रहा था की सीटे भलेही घटे लेकिन सरकार कांग्रेस की बनेगी। लेकिन यहां भी सत्ता के भीतर दो ध्रुव थे भूपेश बघेल और टी. एस. सिंहदेव।

कहां गया था कि दोनों नेताओं के बीच ढाई ढाई साल के सीएम पद का मौखिक समझौता हुआ था, लेकिन यह कभी सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया। समय बीतने के साथ यह विवाद राजनीतिक खींचतान में बदल गया, जिसने पार्टी को भीतर से कमजोर कर दिया।

परिणामस्वरुप चुनाव में टी.एस. सिंहदेव अपनी सीट भी नहीं बचा पाए, और उनके क्षेत्र की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इस आपसी मतभेद और अंदरूनी संघर्ष में छत्तीसगढ़ से भी कांग्रेस की सत्ता छीन ली।

हिमाचल में भी दिख रहा सत्ता संघर्ष, कर्नाटक से मिलते हैं संकेत

हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस के भीतर सत्ता को लेकर खींचतान की तस्वीरे सामने आ रही है। यहां भले ही पार्टी की सरकार सत्ता में है और सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री है, लेकिन सरकार के भीतर की गुटबाजी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री और पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह के बीच शक्ति संतुलन को लेकर लगातार मतभेद की खबरें सामने आती रही है। यह टकराव भले ही खुलकर न दिखे लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के लिए यह भी एक चुनौती है।

अगर कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में समय रहते ऐसा हस्तक्षेप किया होता, जैसे कर्नाटक में किया गया तो शायद नतीजे पार्टी के पक्ष में होते।

Siddaramaiah
Siddaramaiah vs DK Shivakumar

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या कर्नाटक में जो संकट अभी टला है, वह स्थाई समाधान है या सिर्फ कुछ समय के लिए खामोशी है? क्या यह राज्य भी उन राज्यों की कतार में खड़ा हो चुका है, जहां भीतरी कलह ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया? और अगर ऐसा हुआ, तो कर्नाटक में पार्टी के लिए एक और हर का सबब बन सकता है।

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