Vat Savitri व्रत में क्यों झलती हैं महिलाएं पति को पंखा? जानिए इसके पीछे छिपे धार्मिक और पौराणिक रहस्य
Vat Savitri व्रत हिन्दू धर्म में सुहागिनों का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं और वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा करती हैं। पूजा के बाद जब व्रत संपन्न होता है, तो एक विशेष परंपरा निभाई जाती है—पति को बांस के पंखे से हवा करना। यह प्रथा केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि पौराणिक महत्व से भी जुड़ी हुई है।
व्रत की पूजा विधि और धार्मिक अनुष्ठान
इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं और वट वृक्ष के पास जाकर पूजा सामग्री से पूजन करती हैं। बांस की टोकरी में भीगे चने, मीठे गुलगुले, मौली, फल, पान, सुपारी, धूप-बाती और जल से भरा लोटा लेकर वे वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। कलावा (मोली) को वट वृक्ष में लपेटते हुए वे अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
पति को पंखा क्यों करती हैं महिलाएं?
पूजा पूर्ण होने के बाद महिलाएं वट वृक्ष को पंखा झलती हैं, फिर अपने पति के पैर धोकर आशीर्वाद लेती हैं और उन्हें भी बांस के पंखे से हवा देती हैं। इस परंपरा का गहरा संबंध है सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से।
पौराणिक कथा: सावित्री और सत्यवान
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब सावित्री के पति सत्यवान को यमराज लेने आए थे, तब वह उन्हें वट वृक्ष के नीचे ले आई थीं। सत्यवान जंगल में लकड़ियां काटते समय बेहोश होकर गिर पड़े थे। सावित्री ने उन्हें वट वृक्ष की छांव में लिटाया और बांस के पंखे से उन्हें ठंडी हवा दी थी, ताकि उन्हें आराम मिल सके। सावित्री की भक्ति और सेवा भावना से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दे दिया। उसी घटना की स्मृति में आज भी महिलाएं पति को पंखा झलती हैं।
बांस के पंखे का महत्व
बांस हिन्दू परंपरा में पवित्रता और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। व्रत में बांस का पंखा चढ़ाना और फिर उसे पति को झलना, एक प्रकार से सत्यवान को दोबारा जीवन देने के प्रतीक रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि इस दिन बांस के पंखे का दान करना भी अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
नारी शक्ति और भक्ति का प्रतीक
वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में नारी की शक्ति, समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अपने संकल्प, श्रद्धा और आस्था के साथ यह व्रत रखती हैं और अपने परिवार की सुख-शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
वट सावित्री पूजा के बाद पति को पंखा झलने की परंपरा का गहरा धार्मिक महत्व
वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में एक विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को आता है और मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं इसे अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं पूरे विधि-विधान और 16 श्रृंगार के साथ उपवास रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं। पूजा की समाप्ति के बाद एक विशेष परंपरा निभाई जाती है जिसमें महिलाएं अपने पति को बांस के पंखे से हवा करती हैं। यह परंपरा न केवल भावनात्मक है, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और पौराणिक महत्व भी है।

वट सावित्री व्रत सावित्री और सत्यवान की कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि जब सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु का समय आया और यमराज उन्हें लेने आए, तब सावित्री ने उन्हें अपने तप और भक्ति से वापस जीवन दिलाया था। यह घटना वट वृक्ष के नीचे घटित हुई थी, और उसी समय सावित्री ने अपने पति को शीतलता देने के लिए बांस के पंखे से हवा दी थी। इसी प्रसंग को आधार बनाकर आज भी व्रती महिलाएं इस परंपरा का पालन करती हैं।
पूजा के दिन महिलाएं बांस की टोकरी में गुड़, चने, गुलगुले, फल, पान, सुपारी, धूप, दीप, मौली आदि सामग्री लेकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। वे कलावा को वट वृक्ष में बांधती हैं और उसकी परिक्रमा करती हैं। इसके बाद वे वट वृक्ष को भी पंखा झलती हैं, और जब घर लौटती हैं तो पति के चरण धोकर उन्हें पंखा करती हैं। इस कार्य के पीछे यह भाव छिपा होता है कि जैसे सावित्री ने अपने पति की जान बचाई थी, वैसे ही वे भी अपने पति के जीवन को संकटों से मुक्त और दीर्घायु बनाना चाहती हैं।
इस दिन बांस के पंखे का विशेष महत्व होता है। बांस को हिन्दू धर्म में पवित्र और शुभ माना जाता है। पूजा में बांस का पंखा चढ़ाना और फिर उसे पति को अर्पित करना एक धार्मिक क्रिया है, जिसे सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के प्रतीक रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि महिलाएं इस दिन बांस का पंखा दान भी करती हैं, जिसे बहुत पुण्यदायी माना जाता है।

यह परंपरा महिला की अपने पति के प्रति निष्ठा, प्रेम और समर्पण को दर्शाती है। वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह भारतीय नारी की शक्ति, धैर्य और श्रद्धा का जीवंत प्रमाण है। यह पर्व समाज में वैवाहिक संबंधों की गहराई और सांस्कृतिक मूल्य को मजबूत करता है।
इस व्रत में केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि उसमें छिपा हुआ जीवन दर्शन भी है। यह संदेश देता है कि नारी यदि संकल्प कर ले, तो वह मृत्यु को भी टाल सकती है। सावित्री का साहस और प्रेम आज भी हर स्त्री को प्रेरित करता है। इसलिए वट सावित्री व्रत सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि एक जीवन मूल्य है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा को दर्शाता है।
वट सावित्री पूजा के बाद पति को पंखा झलने की परंपरा का महत्व – 200 शब्दों में
वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। पूजा के बाद महिलाओं द्वारा अपने पति को बांस के पंखे से हवा करना एक विशेष परंपरा है, जिसका पौराणिक महत्व है।
यह परंपरा सावित्री और सत्यवान की कथा से जुड़ी है। जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेने आए थे, तब सावित्री ने अपने तप और दृढ़ निष्ठा से उन्हें मना लिया था। कथा के अनुसार, जब सत्यवान जंगल में मूर्छित होकर गिर पड़े थे, तो सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे उन्हें शीतलता पहुंचाने के लिए बांस के पंखे से हवा दी थी। तभी से इस परंपरा की शुरुआत मानी जाती है।
महिलाएं पहले वट वृक्ष को पंखा झलती हैं और फिर पति को। यह न केवल एक धार्मिक कर्म है, बल्कि इसमें पति के प्रति समर्पण और सेवा की भावना भी समाहित होती है। इस दिन बांस का पंखा दान करना भी पुण्यकारी माना जाता है।
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Source-Indiatv
Written by -sujal