नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में हाईवे किनारे बने एक घर को बिना उचित प्रक्रिया के बुलडोजर से ध्वस्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कड़ी फटकार लगाई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “आप रातों-रात किसी का घर नहीं तोड़ सकते। यह पूरी तरह से अराजकता है।” कोर्ट ने इस अवैध कार्रवाई के खिलाफ दोषी अधिकारियों पर तुरंत कानूनी कार्रवाई करने और पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश दिया है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ का कड़ा रुख: “बिना नोटिस, बिना प्रक्रिया के विध्वंस अराजकता है”
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को फटकार लगाई और पूछा कि आखिर किस प्रक्रिया के तहत लोगों के घरों को ध्वस्त किया गया। कोर्ट ने कहा कि यह एक असंवैधानिक कार्रवाई है, और बिना नोटिस के ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। कोर्ट के अनुसार, सरकार के हलफनामे में भी स्पष्ट किया गया कि मकान तोड़ने से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया था, केवल लाउडस्पीकर के जरिए जानकारी दी गई थी।
सड़क चौड़ीकरण के नाम पर अवैध कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान
याचिका में कहा गया कि जिला प्रशासन और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने बिना किसी पूर्व सूचना के याचिकाकर्ता के घर को 3.7 मीटर अतिक्रमण के आधार पर ध्वस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की कार्रवाई गैरकानूनी है और पीड़ित को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने मुख्य सचिव को सभी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है।
“3.7 मीटर का अतिक्रमण, पर पूरा घर ध्वस्त” – कोर्ट ने उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन की कार्यवाही पर सवाल उठाए। याचिकाकर्ता मनोज टिबरेमाल ने बताया कि प्रशासन ने पहले ही 3.7 मीटर का अतिक्रमण चिन्हित कर दिया था, जिसे उन्होंने खुद ही हटा दिया था। बावजूद इसके, डेढ़ घंटे के भीतर बुलडोजर के जरिए उनका पूरा घर ध्वस्त कर दिया गया, और घरवालों को समय भी नहीं दिया गया।
123 अन्य निर्माण भी ध्वस्त, कोर्ट ने कार्रवाई की वैधता पर उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान अदालत को यह भी बताया गया कि आसपास के 123 अन्य निर्माण भी ध्वस्त कर दिए गए थे। पुलिस और प्रशासन ने केवल लाउडस्पीकर से मुनादी कर सूचना दी थी, जिसे कोर्ट ने मनमाना और असंवैधानिक बताया। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अतिक्रमण क्षेत्र से अधिक निर्माण को क्यों ध्वस्त किया गया?
25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा और कानूनी कार्रवाई के आदेश
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिससे वह इस अन्याय का थोड़ा मुआवजा पा सके। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मुआवजा अन्य कानूनी उपायों में बाधक नहीं होगा। राज्य सरकार को मुख्य सचिव के माध्यम से दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच और आपराधिक कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश: अवैध विध्वंस पर कठोर कदम उठाए जाएं
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से स्पष्ट है कि इस तरह की अवैध कार्रवाई को सहन नहीं किया जाएगा। यह मामला यह दर्शाता है कि कानून के दायरे में रहकर ही किसी भी प्रकार की कार्रवाई की जा सकती है