Air India Crash ने मणिपुर की एक मां से उसकी इकलौती बेटी को हमेशा के लिए छीन लिया — यह कहानी सिर्फ एक हादसा नहीं, एक मां के टूटे हुए सपनों की चीख है।
ताबूत के पास बैठी मां की आंखों में ऐसा दर्द था, जिसे कोई शब्द बयां नहीं कर सकते। चेहरा गम में डूबा हुआ, कांपते हाथ ताबूत पर टिके हुए — जैसे अपनी बेटी को आखिरी बार छूने की कोशिश कर रहे हों। नेओनु की मां, जिन्होंने पहले ही अपने जीवनसाथी को खो दिया था, अब अपनी इकलौती संतान को भी खो चुकी थीं। आंसुओं की बेजुबान धार, ताबूत पर ठहरी उंगलियां और भीतर से उठती चुप चीख – ये पल हर किसी का दिल तोड़ देने के लिए काफी थे। यह दृश्य ऐसा था, जो देखने वालों की रूह तक को झकझोर गया और जिसे भुला पाना शायद किसी के लिए मुमकिन नहीं होगा।
कभी-कभी कोई इंसान इस दुनिया से चला तो जाता है, लेकिन उसकी यादें, दुआएं और वो खामोशी जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं होती—हमेशा पीछे रह जाती हैं। बीती रात मणिपुर के कंगपोकपी जिले की फिज़ाओं में सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा था – लैमुनुनथेम सिंगसन, जिसे घरवाले और चाहने वाले स्नेह से ‘नेओनु’ कहा करते थे।

19 जून की रात, जब लगभग 9:20 PM एयर इंडिया की फ्लाइट अटेंडेंट और कंगपोकपी की होनहार बेटी नेओनु का पार्थिव शरीर उनके घर लाया गया, तो पूरे शहर पर सन्नाटा छा गया। यह वही बेटी थी जो गर्व से ड्यूटी पर निकली थी, लेकिन अब लौटकर आई तो एक बंद ताबूत में।
नेओनु के आगमन पर जैसे समय ठहर गया। राष्ट्रीय राजमार्ग-2 के दोनों ओर लोगों की भीड़ थी, लेकिन कोई शोर नहीं था। दूर-दूर तक जली मोमबत्तियां इंसानियत की एक ऐसी दीवार बन गईं, जिसमें न कोई धर्म था, न कोई जात-पात—बस हर दिल में नेओनु के लिए सम्मान और दर्द की साझा भावना थी।
उनके घर पर एक भावुक प्रार्थना सभा आयोजित की गई। रीति-रिवाजों के अनुसार ताबूत को पारंपरिक शॉल ओढ़ाकर श्रद्धांजलि दी गई। इस विदाई में जो खामोशी थी, वो शब्दों से कहीं ज़्यादा गूंज रही थी।
नेओनु अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके साहस, सेवा और मुस्कुराते चेहरे की यादें इस शहर और देश के हर दिल में हमेशा जिंदा रहेंगी।
क्रैश ने एक मां से उसकी पूरी दुनिया छीन ली
उस रात सबसे ज्यादा विचलित करने वाला दृश्य था — एक मां, जो अब पूरी तरह अकेली रह गई हैं। वे ताबूत के पास चुपचाप बैठी थीं, अपनी इकलौती बेटी को अंतिम बार निहारते हुए। चेहरा दुख से सुन्न था, और हाथ उस ताबूत पर टिके थे मानो बेटी को आखिरी बार महसूस करना चाहती हों। नेओनु की मां नेमनेइलहिंग सिंगसोन, जिनके पति का देहांत पहले ही हो चुका था, अब अपनी जिंदगी का आखिरी सहारा — अपनी इकलौती बेटी — को भी खो बैठीं। उनकी आंखों से बहते आंसू, कांपते हाथ, और ताबूत पर ठहरी आखिरी छुअन… इन पलों की चुप्पी ही सबसे बड़ी चीख बन गई — जिसे देख और महसूस कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं था।

नेओनु की अधूरी उड़ान: एक कर्तव्य जिसने जान ले ली
13 नवंबर 1998 को जन्मी लैमनुनथेम सिंगसोन, जिन्हें सभी स्नेह से नेओनु कहते थे, मणिपुर के एक साधारण परिवार की सबसे खास बेटी थीं। चार भाई-बहनों में तीसरे स्थान पर और मां की इकलौती बेटी — नेओनु न केवल इस घर की रौशनी थीं, बल्कि पूरे परिवार की रीढ़ भी थीं।
राज्य में जातीय हिंसा के बाद उनका परिवार इंफाल से पलायन कर कंगपोकपी में एक किराए के घर में रहने लगा। बड़े भाई बीमार हैं, छोटा भाई अभी नाबालिग है और इस कठिन परिस्थिति में नेओनु ही एकमात्र सदस्य थीं जो आर्थिक जिम्मेदारी संभाल रही थीं।
हादसे वाली फ्लाइट पर उनकी ड्यूटी पहले तय नहीं थी। लेकिन एक बीमार सहकर्मी की मदद के लिए उन्होंने अपनी शिफ्ट बदल ली — और यही कर्तव्यनिष्ठा उनकी आखिरी उड़ान बन गई। हादसे की एक रात पहले उन्होंने अपनी मां से फोन पर बातचीत की थी। उन्होंने कहा था कि जल्दी सोना चाहती हैं क्योंकि सुबह ड्यूटी है। हमेशा की तरह मां-बेटी ने साथ में फोन पर प्रार्थना की। उन्हें क्या पता था — यह उनकी आखिरी बातचीत होगी।
एक बेटी जो अब मिट्टी में दफन होगी, पर यादों में जिंदा रहेगी
आज दोपहर, कंगपोकपी की धरती पर नेओनु का अंतिम संस्कार किया जाएगा। लेकिन नेओनु का जाना केवल एक जीवन का अंत नहीं है — यह एक संघर्षशील आत्मा की अमरता है। उनकी मुस्कान, उनका समर्पण, और उनका निस्वार्थ बलिदान अब हर उस दिल में जिंदा रहेगा जो उन्हें जानता था।

वो अब इस दुनिया में नहीं रहीं, लेकिन उनकी कहानी कंगपोकपी की गलियों में, मोमबत्तियों की रौशनी में, और मां की नम आंखों में हमेशा के लिए बस गई है। नेओनु अब एक नाम नहीं, एक भावना बन चुकी हैं — साहस, सेवा और त्याग की प्रतीक।