Army Chief : चित्रकूट में ली दीक्षा, रामभद्राचार्य ने दक्षिणा में मांग लिया PoK
सेना प्रमुख उपेंद्र द्विवेदी ने लिया राम मंत्र, गुरु बोले- ‘तुम शस्त्र से लड़ो, मैं शास्त्र से’

नई दिल्ली: हाल ही में भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने चित्रकूट में प्रसिद्ध हिंदू संत और विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य से राम मंत्र की दीक्षा ली। इस अवसर पर रामभद्राचार्य ने आशीर्वाद के साथ-साथ अनोखी दक्षिणा की मांग कर सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख से उन्होंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) को दक्षिणा में मांगा है। उनका कहना है, “तुम शस्त्र से लड़ो, मैं शास्त्र से अपनी जंग लड़ूंगा।”
क्या है दीक्षा का महत्व?
हिंदू परंपरा में दीक्षा एक आध्यात्मिक अनुष्ठान होता है, जिसमें गुरु अपने शिष्य को मंत्र देकर उसे आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रक्रिया में शिष्य गुरु के बताए मार्ग पर चलते हुए धर्म, साधना और जीवन मूल्य समझने का प्रयास करता है।

रामभद्राचार्य ने बताया कि उन्होंने सेना प्रमुख को वही राम मंत्र दिया है, जिसे मां सीता ने हनुमान जी को दिया था। उनका मानना है कि जैसे हनुमान जी ने लंका पर विजय प्राप्त की, वैसे ही इस मंत्र से भारतीय सेना भी PoK पर विजय हासिल कर सकती है।
सीडीएस उपेंद्र द्विवेदी क्यों पहुंचे चित्रकूट?
जनरल उपेंद्र द्विवेदी हाल ही में चित्रकूट पहुंचे थे जहां उन्होंने रामभद्राचार्य से भेंट की और आशीर्वाद लिया। दोनों के बीच गहन आध्यात्मिक और देशसेवा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। यह मुलाकात केवल धार्मिक नहीं बल्कि राष्ट्रभक्ति और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाने वाली भी थी।
रामभद्राचार्य ने क्यों मांगा PoK?

जब जनरल द्विवेदी ने दीक्षा ली, तब रामभद्राचार्य ने उनसे PoK की दक्षिणा मांगी। यह प्रतीकात्मक मांग न सिर्फ भारत के भूभाग की रक्षा की भावना को दिखाती है, बल्कि देशवासियों की उस आकांक्षा को भी सामने लाती है कि PoK भारत का अभिन्न हिस्सा है। रामभद्राचार्य का यह बयान तेजी से वायरल हो गया और सोशल मीडिया पर इसे समर्थन भी मिला।
कौन हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य?

जगद्गुरु रामभद्राचार्य, जिनका जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था, वे एक प्रख्यात हिंदू संत, संस्कृत विद्वान, कथावाचक, लेखक, कवि, संगीतकार और दार्शनिक हैं।
वह दृष्टिहीन हैं लेकिन उन्हें 22 भाषाओं का ज्ञान है और अब तक 80 से अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। उन्होंने चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना की है जो देशभर के दिव्यांग विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा प्रदान करता है।
सेना प्रमुख के दीक्षा लेने पर क्या बोले लोग?
सोशल मीडिया पर सेना प्रमुख की यह दीक्षा चर्चा का विषय बन गई है। एक ओर कुछ लोगों ने इसे भारतीय परंपरा और संस्कृति से जुड़ाव का प्रतीक बताया है, तो वहीं कुछ आलोचकों ने सेना और धर्म के बीच की दूरी बनाए रखने की बात कही।
हालांकि अधिकांश प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं और लोगों ने इस घटना को एक प्रेरक उदाहरण माना है कि कैसे एक सैनिक अपने धर्म और संस्कृति से जुड़ा रह सकता है।
क्या सेना प्रमुख का दीक्षा लेना संविधान के खिलाफ है?
कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि एक सरकारी अधिकारी या सैनिक को अपनी व्यक्तिगत आस्था निभाने का अधिकार होता है, जब तक कि वह सरकारी कार्यों में पक्षपात या भेदभाव नहीं करता। इसलिए सेना प्रमुख का दीक्षा लेना संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में आता है।
राम मंत्र और हनुमान जी की लंका विजय
रामभद्राचार्य के अनुसार, हनुमान जी को जब मां सीता ने राम मंत्र दिया था, तब उन्होंने लंका जाकर रावण की सेना को धूल चटा दी थी। इसी मंत्र की शक्ति से वे अग्नि परीक्षा से बचे और प्रभु श्रीराम का कार्य सिद्ध किया।
रामभद्राचार्य मानते हैं कि यही मंत्र भारतीय सैनिकों को भी अविचल संकल्प, वीरता और विजय का मार्ग देगा।
PoK की दक्षिणा: सांकेतिक या यथार्थ?
रामभद्राचार्य की यह मांग यद्यपि प्रतीकात्मक है, परंतु यह भारतीयों की राष्ट्रीय भावनाओं और भू-राजनीतिक आकांक्षाओं को दर्शाती है। वर्तमान में भारत सरकार और सेना भी PoK को भारत का हिस्सा मानती है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है।
यह भी पढ़ें: Bhartiya TV के साथ पढ़ें हिंदी न्यूज़: हिंदी समाचार, Today Hindi News, Latest Breaking News in Hindi – Bhartiyatv.com