Dindori Hospital मां के अंदर खून की कमी पर बच्चा होते ही जिला अस्पताल से छुट्टी, परेशानी सुनते ही CMHO ने काटा फोन
जिला अस्पताल की लापरवाही ने फिर खोली स्वास्थ्य सेवाओं की पोल

मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले से एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। जिला अस्पताल की अव्यवस्थाओं का शिकार इस बार बैगा जनजाति की एक महिला बनी, जिसे सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारी के बावजूद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। यही नहीं, जब इस समस्या को लेकर जनपद अध्यक्ष ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMHO) को फोन किया तो उन्होंने झल्लाकर शिकायत को नजरअंदाज कर दिया और फोन काट दिया।
सिकल सेल पीड़िता महिला फर्श पर तड़पती रही

बैगा जनजाति की चमनिया बाई, जो सिकल सेल की गंभीर मरीज हैं, उन्हें डिलीवरी के बाद सिर्फ 10 दिन के भीतर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। महिला के शरीर में खून की भारी कमी थी, और उसे लगातार देखभाल की जरूरत थी। बावजूद इसके, उसे जिला अस्पताल से बाहर कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि चमनिया बाई अपनी सास कुशियां बाई के साथ अस्पताल के फर्श पर ही पड़ी रहीं।

उनकी सास ने बताया कि, “डिलीवरी के दौरान बहू को पांच यूनिट खून चढ़ाना पड़ा था। इसके बाद भी उसकी हालत कमजोर बनी हुई है। लेकिन अस्पताल वालों ने यह कहकर छुट्टी दे दी कि अब महिला को भर्ती रखने की जरूरत नहीं है।”
जनपद अध्यक्ष ने फोन किया तो CMHO भड़क गए
जनपद अध्यक्ष आशा धुर्वे, जब खुद रक्तदान करने अस्पताल पहुंचीं तो उन्होंने चमनिया को फर्श पर पड़े देखा। हालात देखकर उन्होंने CMHO डॉ. रमेश मरावी को फोन किया। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया बेहद गैर-जिम्मेदाराना रही। उन्होंने कहा, “हर कोई मुझसे ही समस्याएं कहता है।” और बिना कोई समाधान दिए फोन काट दिया।

यह रवैया केवल अमानवीय ही नहीं, बल्कि आदिवासी समुदाय की उपेक्षा का भी प्रतीक है। जब एक जनप्रतिनिधि की बात को इतनी बेरुखी से टाल दिया जाता है, तो आम मरीजों की स्थिति का अंदाजा लगाना कठिन नहीं।
बैगा जनजाति पर सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में?
कुशियां बाई बैगा ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “सरकार बैगा जनजातियों के लिए कई योजनाएं चलाती है। हमने भी सोचा कि अब कुछ सुधार होगा। लेकिन यहां तो हालात और भी बदतर हैं।”
उनके अनुसार अस्पताल में न तो समय पर खाना मिलता है और न ही बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। उन्हें खुद खाना पकाकर लाना पड़ रहा है, और बहू इलाज के नाम पर बस एक कोने में पड़ी रही।
बच्चे के लिए बेड मिला, मां को बाहर कर दिया
एक अन्य महिला राजरानी झरिया ने बताया कि उनका नवजात बच्चा एसएनसीयू (शिशु गहन चिकित्सा इकाई) में भर्ती है। लेकिन उन्हें खुद अस्पताल के बेड से हटा दिया गया। “मैं खुद भी बीमार हूं, लेकिन अस्पताल वालों ने बच्चे को भर्ती रखकर मुझे बेड से हटा दिया। अब फर्श ही मेरा सहारा है,” उन्होंने कहा।
यह बात अपने आप में चौंकाने वाली है कि एक मां को बच्चे से अलग कर सिर्फ इसलिए फर्श पर लिटा दिया गया क्योंकि बेड की व्यवस्था नहीं थी।
मीडिया के दबाव के बाद मिला बेड
जब यह मामला मीडिया तक पहुंचा, और सवाल उठने लगे, तो अस्पताल प्रशासन हरकत में आया। देर से ही सही, लेकिन दोनों महिलाओं को बेड उपलब्ध कराया गया।
यह दर्शाता है कि यदि मीडिया का दबाव न हो तो गरीब और आदिवासी महिलाओं के लिए इलाज तक हासिल कर पाना कितना मुश्किल है।
प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
पूरे घटनाक्रम में सबसे अधिक आलोचना जिला चिकित्सा अधिकारी की हो रही है। उनकी जिम्मेदारी थी कि वे जनप्रतिनिधि की शिकायत को गंभीरता से लेते और तत्काल कार्रवाई करते। लेकिन उन्होंने उल्टा फोन काट दिया।
यह रवैया बताता है कि प्रशासनिक संवेदनशीलता की कितनी कमी है और स्वास्थ्य व्यवस्था में कैसे जिम्मेदार अधिकारियों का अहंकार व्यवस्था को गर्त में ले जा रहा है।
सवाल जो सरकार और प्रशासन से पूछे जाने चाहिए
- सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित महिला को क्यों जल्दबाजी में छुट्टी दी गई?
- जब बच्चा भर्ती था, तो मां को फर्श पर क्यों छोड़ा गया?
- क्या बैगा जनजातियों के लिए चलाई जा रही योजनाएं सिर्फ कागजी हैं?
- CMHO जैसी जिम्मेदार कुर्सी पर बैठे अधिकारी को शिकायत मिलने पर फोन काट देना क्या अमानवीय व्यवहार नहीं?
आगे क्या?
डिंडोरी की यह घटना केवल एक महिला की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता का उदाहरण है। सरकार को चाहिए कि वह न केवल इस मामले की जांच करे, बल्कि इस तरह की घटनाओं को दोहराने से रोकने के लिए सिस्टम में जवाबदेही तय करे।
जनता को भी अब जागरूक होकर अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी। अगर हम चुप रहे, तो आने वाले कल में यही हालात किसी और गरीब परिवार के लिए घातक बन सकते हैं।