Turkmenistan में बंद होगा ‘नरक का दरवाजा’! समझिए 54 साल से जल रही आग अब कैसे बुझने जा रही है

‘गेटवे टू हेल’ का इतिहास: कब और कैसे बना यह नरक का दरवाजा
तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान के बीच स्थित यह विशाल गैस क्रेटर जिसे ‘गेटवे टू हेल’ यानी ‘नरक का दरवाजा’ कहा जाता है, करीब 54 सालों से लगातार जल रहा है। इसका असली नाम है दरवाज़ा गैस क्रेटर (Darvaza Gas Crater)। इसका जन्म 1971 में हुआ था, जब सोवियत वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में प्राकृतिक गैस के भंडार की खोज के लिए ड्रिलिंग की।
उस समय तुर्कमेनिस्तान, सोवियत संघ का हिस्सा था और वैज्ञानिक इस क्षेत्र में मौजूद मीथेन गैस के रिसाव से निपटने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन अनजाने में उन्होंने एक विशाल भूमिगत गैस क्षेत्र को ड्रिल कर दिया जिससे ज़मीन धंस गई और एक बड़ा गड्ढा बन गया।

इस रिसाव को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने सोचा कि गैस को जला दिया जाए ताकि मीथेन न फैले। उन्हें लगा कुछ दिनों में गैस खत्म हो जाएगी, लेकिन वे गलत थे। आग जलती रही… और अब तक जल रही थी।
पर्यटन आकर्षण बना लेकिन पर्यावरण को पहुंचाया नुकसान
‘नरक का दरवाजा’ पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। हर साल हजारों सैलानी इस अग्निकुंड को देखने आते हैं, खासकर रात के समय, जब इसकी चमक दूर-दूर तक दिखाई देती है।
हालांकि यह तुर्कमेनिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद रहा, लेकिन इसका पर्यावरणीय प्रभाव बेहद विनाशकारी रहा। लगातार जलती आग से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता रहा जो कि कार्बन डाइऑक्साइड से 25 गुना अधिक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है।

54 साल बाद अब आग बुझने को तैयार! सरकार ने किया बड़ा दावा
इस सप्ताह तुर्कमेनिस्तान सरकार ने एक चौंकाने वाली घोषणा की। उन्होंने कहा कि वे दरवाज़ा गैस क्रेटर की आग को “काफी हद तक कम” करने में कामयाब रहे हैं।
सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ‘Turkmengaz’ की डायरेक्टर इरीना लुरीवा ने एएफपी को बताया कि पहले जहां कई किलोमीटर दूर से अग्नि की लपटें दिखती थीं, अब वहां हल्की जलन मात्र बाकी है।
उन्होंने यह भी बताया कि मीथेन को कैप्चर करने के लिए आग के चारों ओर कई कुएं खोदे गए हैं, जिससे गैस को ऊपर निकलने से रोका जा सके।
अभी कितना कम हुआ है गैस का जलना?
अधिकारियों का दावा है कि क्रेटर की आग “तीन गुना कम” कर दी गई है, हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि आग पूरी तरह कब तक बुझाई जाएगी।
इस कदम का मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय क्षति को रोकना और मीथेन उत्सर्जन पर काबू पाना है।
तुर्कमेनिस्तान: गैस भंडार भी बड़ा, रिसाव भी सबसे अधिक
तुर्कमेनिस्तान दुनिया के सबसे बड़े प्राकृतिक गैस भंडारों वाले देशों में से एक है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, यह देश मीथेन गैस के रिसाव से सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वालों में गिना जाता है।
हालांकि स्थानीय अधिकारी इन आंकड़ों को खारिज करते हैं, लेकिन ब्रिटिश अखबार ‘द गार्जियन’ की एक रिपोर्ट में बताया गया कि तुर्कमेनिस्तान के सिर्फ दो गैस क्षेत्रों से इतना मीथेन निकलता है जो ब्रिटेन के सालाना कार्बन उत्सर्जन से भी अधिक वैश्विक तापन का कारण बनता है।
भविष्य की दिशा: अब क्या करेगा तुर्कमेनिस्तान?
यह कदम दिखाता है कि तुर्कमेनिस्तान अब जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को गंभीरता से ले रहा है। आग को पूरी तरह बुझाने के लिए तकनीकी प्रयास जारी हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस पर नज़र बनाए हुए है।
यह भी संभावना है कि भविष्य में तुर्कमेनिस्तान अपने प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर और पर्यावरण-अनुकूल उपयोग करने की नीति अपनाएगा।
पर्यटन पर असर पड़ेगा?
‘गेटवे टू हेल’ अबतक तुर्कमेनिस्तान का सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल रहा है। लेकिन अब जब आग बुझने की ओर है, तो सवाल यह भी उठता है कि क्या इसका असर वहां के पर्यटन पर पड़ेगा?
संभावना है कि आग बुझने के बाद भी यह स्थल अपनी ऐतिहासिक और वैज्ञानिक रुचि के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता रहेगा। विशेष रूप से वे लोग जो जलवायु संकट, पर्यावरण और भूविज्ञान में रुचि रखते हैं।