Netherlands : ने इस देश पर लगाया हवा चुराने का आरोप, जानें क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली:
दुनिया में आपने कई तरह की चोरी के बारे में सुना होगा — सोने-चांदी की, महंगी गाड़ियों की या फिर डाटा चोरी की। लेकिन हाल ही में एक अनोखा मामला सामने आया है, जिसमें एक देश ने दूसरे देश पर “हवा चुराने” का आरोप लगाया है। सुनने में यह अजीब लग सकता है लेकिन यह मामला पूरी तरह से वास्तविक है और इससे जुड़े तथ्य वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दोनों दृष्टिकोण से अहम हैं।
बेल्जियम पर हवा चुराने का आरोप क्यों लगा?

यह सनसनीखेज आरोप नीदरलैंड्स की एक मौसम संबंधी संस्था के प्रमुख रेम्को वर्जिल्बर्ग ने लगाया है। उन्होंने बेल्जियम की ब्रॉडकास्टिंग सर्विस को दिए इंटरव्यू में यह दावा किया कि बेल्जियम के विंड टर्बाइनों की स्थिति कुछ ऐसी है जिससे वे नीदरलैंड्स की हवा को चुरा रहे हैं।
उनका यह बयान तेजी से वायरल हो गया है और इस पर बहस छिड़ गई है कि क्या वाकई हवा भी चुराई जा सकती है? क्या यह केवल एक तकनीकी या पर्यावरणीय मुद्दा है, या फिर यह दो पड़ोसी देशों के बीच ऊर्जा को लेकर बढ़ रही प्रतिस्पर्धा का संकेत है?
विंड टर्बाइन से कैसे चुराई जाती है हवा?

रेम्को वर्जिल्बर्ग, जो कि एक प्रमुख वेदर फोरकास्ट फर्म के CEO हैं, ने बताया कि हवा की दिशा और गति पर विंड टर्बाइनों का असर होता है। जब हवा विंड टर्बाइन से गुजरती है तो उसकी गति कम हो जाती है। यदि बेल्जियम ने अपने विंड टर्बाइनों को ऐसे स्थान पर स्थापित किया है जहाँ से हवा दक्षिण-पश्चिम दिशा से आती है, और यह हवा पहले बेल्जियम के विंड फार्म्स से होकर गुजरती है, तो नीदरलैंड्स तक पहुंचने से पहले हवा की तीव्रता कम हो जाती है।
“आप हमारी हवा चुरा लेते हैं”
ब्रसेल्स टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, वर्जिल्बर्ग ने कहा:
“विंड टर्बाइनों को हवा से ऊर्जा निकालने के लिए डिज़ाइन किया गया है। जब आप विंड टर्बाइन के पीछे की ओर हवा को मापते हैं, तो उसकी गति कम हो जाती है। और जब कई विंड टर्बाइन एक साथ काम करते हैं, तो उनके पीछे हवा की तीव्रता और भी घट जाती है।”
उन्होंने आगे कहा, “बेल्जियम के विंड फार्म नीदरलैंड्स के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं। और चूंकि हवा अक्सर इसी दिशा से आती है, तो यह हमारी हवा पहले आप ले लेते हैं। यह एक तरह की ‘अनजानी चोरी’ है।”
उत्तरी सागर में छिड़ी ऊर्जा की जंग?
यह विवाद उत्तरी सागर से जुड़ा हुआ है, जहाँ कई देश अपने-अपने विंड फार्म स्थापित कर रहे हैं। इन फार्म्स के ज़रिए वे पवन ऊर्जा प्राप्त कर कार्बन न्यूट्रल लक्ष्यों की ओर बढ़ना चाहते हैं। लेकिन जब एक देश के विंड फार्म, दूसरे देश के प्राकृतिक संसाधनों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, तो यह मामला केवल पर्यावरण का नहीं रह जाता — यह राजनयिक और रणनीतिक महत्व भी लेने लगता है।
वर्जिल्बर्ग का दावा है कि बेल्जियम के विंड फार्म्स, नीदरलैंड्स के फार्म्स से लगभग 3% पवन ऊर्जा “ले” लेते हैं। यह भले ही संख्या में कम लगे, लेकिन बड़े पैमाने पर यह ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण अंतर पैदा कर सकता है।
क्या यह वाकई चोरी है?
तकनीकी रूप से, इसे “चोरी” नहीं कहा जा सकता। हवा एक साझा प्राकृतिक संसाधन है और समुद्री सीमा पर कोई एक देश इसे पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकता। लेकिन जिस तरह से विंड फार्म्स की स्थिति और डिज़ाइन एक देश के संसाधन पर प्रभाव डाल सकते हैं, वह निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समन्वय की मांग करता है।
अंतरराष्ट्रीय समन्वय की जरूरत
रेम्को वर्जिल्बर्ग ने अपने बयान में कहा,
“हम सब उत्तरी सागर में धीरे-धीरे विंड फार्म बना रहे हैं। ऐसे में अगर समन्वय नहीं हुआ तो हवा की चोरी और ज़्यादा होगी। यह जरूरी है कि हम इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर संगठित रूप से प्रबंधित करें।”
उन्होंने चेतावनी दी कि बिना समन्वय के बनाए गए विंड फार्म भविष्य में और विवाद पैदा कर सकते हैं, जिससे सिर्फ तकनीकी नहीं, कूटनीतिक संकट भी खड़े हो सकते हैं।
बेल्जियम की योजना
बेल्जियम ने 2030 तक उत्तरी सागर में 6 गीगावॉट की विंड टर्बाइन क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य देश को हरित ऊर्जा की दिशा में तेज़ी से ले जा सकता है, लेकिन इसके लिए समन्वित नीति की भी आवश्यकता है।
नीदरलैंड्स की तरह ही अन्य समुद्री सीमावर्ती देश भी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और सभी अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भविष्य में ऐसे आरोप आम हो जाएंगे?
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