Trump Administration महिलाएं मर जाएं लेकिन अबॉर्शन न करें’ – ट्रंप प्रशासन के नए फैसले से अमेरिका में मचा राजनीतिक तूफान
वाशिंगटन:
अमेरिका की राजनीति एक बार फिर गर्भपात जैसे संवेदनशील विषय पर गरमा गई है। ट्रंप प्रशासन ने एक ऐसा फैसला लिया है जिसने अमेरिका में महिला अधिकारों को लेकर बहस को फिर से तेज कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी सरकार अब उन दिशानिर्देशों को रद्द करने जा रही है जो महिलाओं को आपातकालीन परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति देते थे।

यह फैसला तब आया है जब अमेरिका पहले से ही गर्भपात कानूनों को लेकर विभाजित है। इस बदलाव ने डॉक्टरों, महिला अधिकार संगठनों और नागरिकों के बीच चिंता पैदा कर दी है। वहीं, गर्भपात विरोधी संगठन इस निर्णय को महिलाओं और बच्चों की “संरक्षा की दिशा में एक कदम” बता रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
वर्ष 2022 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने Roe v. Wade केस को पलट दिया था, जिसके बाद गर्भपात का राष्ट्रीय अधिकार खत्म हो गया और इसे राज्यों के अधिकार क्षेत्र में छोड़ दिया गया। इसके बाद कई रूढ़िवादी राज्यों ने गर्भपात पर सख्त पाबंदियां लगा दीं।
इसी पृष्ठभूमि में जो बाइडेन प्रशासन ने एक गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई महिला गंभीर चिकित्सकीय संकट में है तो अस्पताल उसे जीवन बचाने के लिए आपातकालीन गर्भपात की अनुमति दे सकते हैं। यह गाइडलाइन महिला की जान बचाने को सर्वोपरि मानती थी।
ट्रंप प्रशासन ने क्यों लिया यह फैसला?
4 जून 2025 को ट्रंप प्रशासन ने घोषणा की कि वह इन गाइडलाइन्स को रद्द करेगा। उनका तर्क है कि बाइडेन प्रशासन ने इस नीति का उपयोग उन राज्यों में गैर-जरूरी गर्भपात को बढ़ावा देने के लिए किया, जहां यह प्रतिबंधित है।
सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया:
“संघीय कानून को इस प्रकार नहीं पढ़ा जाना चाहिए जिससे राज्य कानूनों की अनदेखी हो और आपातकालीन स्थिति की आड़ में अवैध गर्भपात किए जाएं।”
इस फैसले से यह स्पष्ट है कि ट्रंप प्रशासन गर्भपात को एक अपराध मानते हुए राज्यों के निर्णय को प्राथमिकता देना चाहता है, भले ही किसी महिला की जान खतरे में क्यों न हो।
डॉक्टर और महिला अधिकार संगठन क्यों हैं चिंतित?

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन, सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स और कई डॉक्टरों ने इस फैसले को महिला स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया है।
नैन्सी नॉर्थअप, जो ‘सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स’ की सीईओ हैं, ने कहा:
“यह एक अमानवीय निर्णय है। ट्रंप प्रशासन चाहता है कि महिलाएं जीवनरक्षक गर्भपात कराने के बजाय आपातकालीन कक्षों में मर जाएं।”

उनका यह बयान सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर वायरल हो गया। कई डॉक्टरों ने बताया कि ऐसी गाइडलाइन हटने से अस्पतालों में डॉक्टर अब कानूनी डर के कारण महिलाओं का सही इलाज नहीं कर पाएंगे।
क्या होगा अब?
इस फैसले के लागू होने के बाद उन राज्यों में जहां गर्भपात पर पूर्ण प्रतिबंध है, वहां डॉक्टर आपातकालीन गर्भपात करने में हिचकेंगे। नतीजतन, गंभीर जटिलताओं से जूझ रही महिलाओं की जान बचाना मुश्किल हो सकता है।
टेक्सास, अलबामा, मिसिसिपी जैसे राज्यों में पहले से ही गर्भपात पर सख्त प्रतिबंध हैं, और ट्रंप प्रशासन के इस कदम से हालात और खराब हो सकते हैं।
गर्भपात विरोधी संगठनों की प्रतिक्रिया
दूसरी ओर गर्भपात विरोधी संगठन इस फैसले की सराहना कर रहे हैं।
एसबीए प्रो-लाइफ अमेरिका की अध्यक्ष मर्जोरी डैनेनफेलसर ने कहा:
“बाइडेन प्रशासन इस कानून का उपयोग गर्भपात को बढ़ावा देने के लिए कर रहा था। ट्रंप प्रशासन ने सही फैसला लिया है।”
उनका मानना है कि “हर जीवन अनमोल है, यहां तक कि गर्भ में पल रही ज़िंदगी भी।”
राजनीतिक असर: 2024 के बाद 2025 में भी गर्भपात बना ‘हॉट इश्यू’
अमेरिका में गर्भपात पहले से ही एक राजनीतिक हथियार रहा है। 2024 में ट्रंप और बाइडेन के बीच हुए राष्ट्रपति चुनाव में यह बड़ा मुद्दा था, और अब 2025 में भी यह बहस फिर से गर्म हो गई है।
डेमोक्रेट्स ट्रंप के इस फैसले को महिला विरोधी करार दे रहे हैं, वहीं रिपब्लिकन इसे “नैतिकता की जीत” बता रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आलोचना
ट्रंप प्रशासन के इस फैसले की आलोचना सिर्फ अमेरिका में नहीं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठनों ने भी की है। उनका कहना है कि महिलाओं के अधिकारों का यह सीधा उल्लंघन है।
भारत समेत अन्य देशों की प्रतिक्रिया?
भारत जैसे देशों में जहां गर्भपात कानून धीरे-धीरे उदार बन रहे हैं, वहां ट्रंप प्रशासन की नीति को ‘पीछे की ओर जाने वाला कदम’ माना जा रहा है। कई भारतीय डॉक्टरों और फेमिनिस्ट संगठनों ने इसे “मानवाधिकार के विरुद्ध” बताया है।
क्या ट्रंप फिर से चुनावी नुकसान उठाएंगे?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से ट्रंप को महिला वोटर्स में नुकसान हो सकता है। बाइडेन कैंपेन पहले से ही इसे भुनाने की तैयारी कर रहा है।
2026 के मिडटर्म चुनावों में गर्भपात एक बार फिर से “ट्रंप बनाम महिला अधिकार” की बहस को उछाल सकता है।
यह भी पढ़ें: