Trump Administration : विदेशी छात्रों पर की सख्ती वीजा इंटरव्यू पर अस्थायी रोक, सोशल मीडिया पोस्ट की होगी गहन जांचका अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर एक और झटका, सोशल मीडिया पोस्ट की होगी जांच, इंटरव्यू पर रोक
America में विदेशी छात्रों की पढ़ाई की योजना बना रहे युवाओं के लिए एक बुरी खबर सामने आई है। ट्रंप प्रशासन ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीजा इंटरव्यू पर अस्थायी रोक लगाने का आदेश दिया है। यह फैसला सोशल मीडिया गतिविधियों की गहन जांच को अनिवार्य करने की योजना के तहत लिया गया है। इस नीति का उद्देश्य वीजा आवेदकों के डिजिटल व्यवहार का विश्लेषण करके अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना बताया गया है।
अमेरिकी दूतावास और काउंसलेट्स में इंटरव्यू अपॉइंटमेंट्स पर रोक
नई नीति के मुताबिक, अमेरिका के सभी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को निर्देश दिया गया है कि वे नई F (शैक्षणिक), M (व्यावसायिक) और J (एक्सचेंज विजिटर) वीजा श्रेणियों के लिए इंटरव्यू अपॉइंटमेंट्स को फिलहाल के लिए न लें। हालांकि, जो इंटरव्यू पहले से निर्धारित हैं, उन्हें यथावत रखा गया है।
यह कदम ट्रंप प्रशासन की “एक्सट्रीम वेटिंग” पॉलिसी का हिस्सा है, जिसके तहत वीजा प्राप्त करने के इच्छुक छात्रों की सोशल मीडिया गतिविधियों की गहन जांच की जाएगी। इसमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक, यूट्यूब और एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर किए गए पोस्ट, कमेंट्स, शेयर और अन्य डिजिटल व्यवहारों की समीक्षा की जाएगी।
विरोधी विचारों और फिलिस्तीन समर्थक छात्रों पर विशेष नजर

खास बात यह है कि इस समीक्षा का केंद्र ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने अपने सोशल मीडिया पर अमेरिका विरोधी या ट्रंप विरोधी पोस्ट साझा किए हैं, या जिन्होंने फिलिस्तीन समर्थक रैलियों में हिस्सा लिया है। ऐसे मामलों में वीजा की स्थिति की पुनः समीक्षा की जाएगी, और आवश्यक होने पर वीजा रद्द भी किया जा सकता है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ छात्रों के वीजा पहले ही निरस्त किए जा चुके हैं, जबकि कई अन्य की जांच जारी है। इस नीति की आलोचना यह कहते हुए भी हो रही है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।
शिक्षा जगत में चिंता की लहर
अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालयों और शिक्षा विशेषज्ञों ने इस फैसले पर चिंता जताई है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, एमआईटी, हार्वर्ड जैसे संस्थानों ने कहा है कि यह नीति न केवल छात्रों के लिए तनावपूर्ण है, बल्कि अमेरिकी उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रतिष्ठा और अर्थव्यवस्था पर भी असर डालेगी।
2023 के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में करीब 11 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं, जिनका अमेरिका की अर्थव्यवस्था में योगदान लगभग 40 अरब डॉलर सालाना है। ये छात्र ट्यूशन फीस, रहने-खाने और यात्रा आदि में बड़ी मात्रा में खर्च करते हैं।
भारत पर असर
भारत अमेरिका को उच्च शिक्षा के लिए सबसे ज्यादा छात्र भेजने वाला दूसरा देश है। चीन पहले नंबर पर है। भारतीय छात्रों की संख्या लगभग 2.7 लाख है, जो अमेरिका में पढ़ाई करने वाले कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों का 25% से अधिक है।
नई नीति के चलते भारतीय छात्रों में भी चिंता बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर छात्रों ने इस रोक को ‘अनुचित’ और ‘राजनीतिक’ बताया है। कई छात्रों ने यह भी आरोप लगाया है कि इस कदम से अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है।
विशेषज्ञों की राय
भारतीय उच्च शिक्षा विशेषज्ञों ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। एजुकेशन कंसल्टेंट अंशुल माथुर के अनुसार, “यह निर्णय छात्रों के लिए मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। सोशल मीडिया का विश्लेषण एक जटिल और विवादास्पद प्रक्रिया है, क्योंकि लोगों के विचार समय के साथ बदलते रहते हैं।”
उनका यह भी मानना है कि अमेरिका जैसे लोकतंत्र में इस तरह की जांच की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष होना चाहिए, नहीं तो यह शिक्षा के वैश्वीकरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
अमेरिका के भीतर भी विरोध के स्वर
अमेरिका के कई मानवाधिकार संगठनों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने इस नीति का विरोध किया है। अमेरिका की ‘अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU)’ ने बयान जारी कर कहा है कि “यह निर्णय छात्रों की निजता और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन है।”
कुछ विश्वविद्यालयों ने प्रशासन से अपील की है कि वे वीजा प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाएं, ताकि योग्य छात्रों को बिना किसी डर के शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिल सके।
सोशल मीडिया की भूमिका पर बहस
यह नीति एक नई बहस को जन्म दे रही है: क्या किसी व्यक्ति के सोशल मीडिया पोस्ट को उनके भविष्य का निर्धारण करने का आधार बनाया जा सकता है?
आज के दौर में युवा सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं और कई बार भावनात्मक या तात्कालिक परिस्थितियों में कुछ पोस्ट कर देते हैं, जो उनके मूल स्वभाव या इरादों को दर्शाता ही नहीं है। ऐसे में, विशेषज्ञ मानते हैं कि डिजिटल व्यवहार का विश्लेषण तो जरूरी हो सकता है, लेकिन यह एकमात्र आधार नहीं होना चाहिए।
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